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________________ जिनवर्धनगणिकृत पद्यानुकारी गद्यमय तपगच्छ गुर्वावली ३४१ कसमीर मरहठ चीण कुंकुण अंग वंग तिलंगए, सोरठ्ठ सवालख देश गुर्जर गौड चौड कलिंगए, कोरंट कोसल देश कोशिक मूलथाण कनूजए, जसु कीर्ति झलकति सूरि नंदउ देवसुंदर सो जए. ५ हमीर हर्मुज सिंधु जलपथ ओडियाण खुरसाणए, पंवाल जंगल मेदपाट करहाट लाट कर्णाटए, नेपाल मंडल मगध मालव पमुह देसविदेसए, जसु कीर्ति झलकति सूरि नंदउ देवसुंदर सो जए. ६ जोगी उदायी पाइ पाटणि गूगडीय सरोवरे, बहु लोय पेखति जस्स पणमिय पायपउम मणोहरो, तउ लोअ पूच्छति जोगि जंपति एस पुरिस जुगुत्तमो, गिरिनारि कणयरी सिद्धि कहिउ तेण कारणि हुं नमो. ७ नहयलिहिं दिणयर जाम जाम रोहणि चिंतामणि, सुरपति मस्तकि जाम तेजि दीपइ चूडामणि, सुरतरु सोहइ जाम मेरु नंदण वणकाणणि, जिणवर भासिय धम्म जाम निवसइ सज्जण-मणि, तामेव गुणवन वर पाटधरण वीरसासणि गणहर भयउ, सिरि संघ गच्छ परिवार सहित देवसुंदर मुणिवर जयउ. ८ अनइ श्री गिरिनार पर्वति श्री कुलमंडनसूरि प्रतिइं हुई अंबिका आदेश सिद्धि, जे श्री देवसुंदरसूरिनइं कही चउथइ भवांतरि सिद्धि, जे श्री गुरु प्रतिइं १३९७ वर्षे जन्म, १४०४ दीक्षा, संवत् १४०२० (१४२०) वर्षे दीउं आचार्यपद, संवत् १४०६८ (१४६८) वर्षे स्वर्गसंपद. जिम जंबूद्वीपमाहि पांच मेरु सुणीइं, तिम तेह गुरुनइ पांच आचार्यशिष्य भणीइं. कुण कुण, सांभलउ - निर्मल वैराग्य तणउ आगर, सकल सिद्धांतनउ सागर, सूरि श्री ज्ञानसागर. १. तथा – सर्वमतवितंडाखंडन, श्री जिनशासनमंडन, सूरि श्री कुलमंडन २. बुद्धिइं सुरु (सुरगुरु) समान, क्रियारत्नसमुच्चय ग्रंथकारक, सकलप्रमादनिवारक, चतुर्दशविद्याकृतनिरंतरयत्न, सूरि श्री गुणरत्न ३.अमीयसमान देशना, बूझवइ लोक अनेक देशना, उपशमरससागर, गुणमणिआगर, भाग्यसौभाग्य-सुंदर, सज्जनजन-पुरंदर, सूरि श्री सोमसुंदर ४. सर्वगच्छकार्यधुरीण, सकलविद्यापारीण, विमलकलाकलापविशाल, जिनशासन-मानस-मराल, श्रीसंयममार्गबहुयतन, सूरि श्री साधुरत्न ५. तेह माहि काल तणइ अनुभावि प्रथम ३ आचार्य अनइ श्री साधुरत्नसूरि गुरु, अनुभवई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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