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________________ ३४२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह देवभवनि सुख पूरु. अनइ श्री महावीर थिकउ ५० पाट धुरंधर, सकलसूरिपुरंदर श्री श्री श्री सोमसुंदरसूरि गुरुपुरंदर हवडां जे निज प्रतापिइं जयवंता वर्त्तइं. जे श्री सोमसुंदरसूरि गुरु उत्तम भाग्यनिधान, सकल युगप्रधान, चारित्रलक्ष्मी-कंठ-कंदलहार, निरुपम ज्ञानभंडार, सकलसूरिशिरोमणि, श्री तपोगच्छनभोमणि, कुवादिमतंगजसीह, निर्मल क्रियावंतमाहि लीह, चउद-विद्या-आगर, गंभीरिमतर्जित-सागर, अज्ञानतिमिर-निराकरण सूर, कषायदावानल वारिपूर, निजदशनाविबोधितानेकदेशजन, निजगुणलक्ष्मीप्रीणितसज्जन, नवकल्पविहार, बइतालीस दोषवर्जित आहार, श्रीजिनशासन-शृंगार, युगप्रधानावतार. जेहे गुरे संस्थाप्या ४ आचार्य, चारित्रभारधरण धुर्य. कुण कुण, सांभलउ - भविकजनपुरंदर, सूरि श्री मुनिसुंदर, जेहे चीठ्ठडउं करी अठोत्तर सउ हाथप्रमाणु, परवादी तणउं ऊतारिउं माण. भविककुमुदविकाशन वितंद्रचंद्र, सूरि श्री जयचंद्र, जेहे वृहस्पति जीतउ गुणविवेकि, समस्यास्तव, कलापकसूत्रनिबद्धश्रीशत्रुजयस्तोत्रवृत्ति प्रमुख कीधां शास्त्र अनेकि. बुद्धिइं जितदेवगुरु, श्री भुवनसुंदरसूरि गुरु. निजधैर्यनिर्जितमंदर, सूरि श्री जिनसुंदर. जे करइं करावई स्वाध्याय, इस्या वर्त्तई श्री जिनकीर्त्तिगणि उपाध्याय प्रमुख ४ अनेकगुणमणिमंडित, वर्त्तइ छइं पंडित. मुनि महासती न लामइ पार, जेह गुरुनउ एवडउ परिवार. भवियणकुमुयविबोहणससिकरसारिच्छ तिहुयणाणंदो, सिरि सोमसुंदरगुरु चिरकालं जयउ जुगपवरो. १ आसोअ पुन्निम विमलमंडल चंद्रकंतिहिं सोहणा, जसु कित्तिकामिणि भमइ अहनिशि तिजयजणमणमोहणा, सिरि सोमसुंदर गुरुपुरंदर जणियजणमणतोसओ, सो जयउ सुहुगुरु तिजयलोयह सयलनासियसंसओ. २ तवगच्छ निम्मल विपुल नहयल भासणेह नभोमणी, जो सयलसुविहिअसूरिचूलामण्डणिक्कसिरोमणी, सिरि सोमसुंदर० सो जयउ सुहुगुरु. ३ सिरिवीरसासणपवरजलनिहिवुड्डि-चंदसमाणओ, ___दहचतुरविज्जावहूय-वयणोदारकुण्डलसंनिहो, सिरि सोमसुंदर० सो जयउ सुहुगुरु० ४ जो सयलमवियणपवरसिवपुरनयणविपुलसुसंदणो, संवेगचंगो विगयसंगो मयणमाणविहण्डणो सिरि सोमसुंदर. सो जयउ सुहुगुरु० ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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