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________________ जिनवर्धनगणिकृत पद्यानुकारी गद्यमय तपगच्छ गुर्वावली ३३९ एकदा रात्रि मझारि, आवी शाकिणी च्यारि, गुरुनी पाटि उपाडी ते नीकली, गुरे जाणी मंत्र शक्ति संकली, तउ गाढी टलवली, वचनि दीधइ कीधी मोकली. एकदा सर्पनइ डंसि विकरालि, प्रभातनइ कालि, काष्टवाहक भारा अंतरालि, लिवारी विषापहारिणी वेलि, तिणि लांखिउं विष सघलउं ठेलि स्थानकि स्थानकि जेह गुरु तणा अनेक प्रभाव, ते सवे किम हूं बोलउं मूर्खस्वभाव. एकदा एक महुतई, अति विचक्षण हूतई, आठ यमकनउं काव्य भणी, इसिउं बोलिउं गुरु भणी, हवडां ए (ह) वहूं काव्य, कुणहई किमहइ न हुई श्राव्य, गुरे कहिउं नाथि, महानुभाग अणाथि, पछs एक रात्रि मज्झारि, आठ आठ यमक विचारि, स्तवी देव चउवीस, स्तुति कीधी अठ्ठावीस, अमृत पाहई अति मीठी, प्रभाति ते थुई महुंतई दीठी, ऊपन चमत्कार गाढउ, हियइ महुंतउ हऊउ टाढउ अनइ जेहे श्री गुरे श्री संघाचारभाष्यवृत्ति, श्री शत्रुंजयकल्प, कायस्थितिभवस्थिति-स्तवन, अति यमक श्लेषमय अनेक स्तुति स्तोत्र कीधां, ते अद्यापि वर्त्तई छई प्रसीधां. तेह तणइ पाटि ४७ श्री सोमप्रमसूरि, जेहनई ११ आग (म)नां सूत्रार्थ आवतां जिम गंगानइ पूरि, जेहनां कीधां सविस्तर जीतकल्प, यमकमय अनेक स्तुति वर्त्तई छइं. तेह तणइ पाटि ४८ तेह तणा ४ शिष्य श्री विमलप्रभसूरि ( १ ), श्री परमानंदसूरि २, महाजयणापर श्री पद्मतिलकसूरि ३, महाभाग्यसौभाग्य प्रतापिइं करी भूरि, श्री सोमतिलकसूरि ४. जे श्री गुरु भवियण-मण-मिच्छत्त-जण [ जड] - उम्मूलण गयराय, पंडियजणमणरंजणउ सोमतिलय भडवाउ. २ गुरुराय. १ सयलि महीतल झगमगइ अज्जवि जसु जसवाउ, जेहे भग्गउ अतुलबल मोहराय जेहे खेतसमास मुख कीधा ग्रंथ बहूत, गच्छ गच्छंतरि वापर ते अज्जवि सब्भूत. ३ रयणायरि रयणहं तणउ नो लब्भइ जिम पार, जस्स [सस ] हरुज्जल रोग गुण न गणाई तिम सार. ४ देस-वदेसिइं जाणीइ जसु गुरु तणउं [ अ ]भिहाण, सोमतिलय गुरु सो जयउ सुविहिय सूरिपहाण. ५ जेह गुरुना अनेक चमत्कार, किम, सांभलउ मालव मंडल मझारि, संध्यां शकुन विचारि, नवस्थानकि कीधउं संस्तारकसंग, पूर्विलइ स्थानकि शिलापाति हुउउ मात्रक - भंग. तथा – सविहुं देसि पहाणि, देशि गुर्जरात्र [त्रा ] भिहाणि, कुणइ एकं संनिवेशि, उपाश्रय तणइ प्रवेशि, पाषाण ऊपरि मूकिउ पाउ [य], तत्काल जाणिउ अपाय, शिला ऊपाडी दीधी Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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