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________________ जिनवर्धनगणिकृत पद्यानुकारी गद्यमय तपगच्छ गुर्वावली ३३७ तेह तणइ पाटि ३३ श्री मानदेवसूरि. तेह तणइ पाटि ३४ भव्यकैरवचंद्र, सूरि श्री विमलचंद्र. तेह तणइ पाटि ३५ जिनशासन-उद्योतन, सूरि श्री प्रद्योतन. जे ९९४ विक्रम संवत्सरि, पहुता श्री अर्बुद परिसरि, अर्बुदनी पाजनइ ठामि, प्रसिद्ध टेलीग्रामि, वटवृक्ष हेठि, मुहूर्तरहिं दीधी ट्रेठि. ८ सूरिपद स्थापना कीधी, तिवार पूठिई वडगच्छ प्रसिद्धि सीधी. तेह तणइ पाटि ३६ श्री सर्वदेवसूरि. तेह तणइ पाटि ३७ श्री देवसूरि, जेहरई श्री अर्बुदाचलनइ भूपालि, रूपश्री इसिउं नाम दीधउं ईणं कलिकालि. तेह तणइ पाटि ३८ श्री सर्वदेवसूरि. तेह तणइ पाटि ३९ श्री यशोदेवसूरि. तेह तणइ पाटि ४० श्री मुनिचंद्रसूरि, अनइ श्री मानदेवसूरि, जे श्री मुनिचंद्रसूरिरहिं 'आछणीया' इसिउं नाम, छ विगइपरिहारपरिणाम. तेह बिहुं तणइ पाटइ ४१ श्री अजितदेवसूरि. श्री वादीश्री देवसूरि प्रमुख नही केहनइ घाटि. अनइ श्री अजितदेवसूरितणइ पाटि ४२ श्री विजयसिंहसूरि. तेह तणइ पाटि ४३ श्री मणिरत्नसरि. तेह तणइ पाटि ४४ श्री जगच्चंद्रसूरि, जेहरई प्रमाद नाठउ दूरि. निय गुरु-पयतलि बाल जिम भणतां आइम अंग, ततखणि जस मणि उल्लसिउ बहुत संयमरंग. १ कलिमलकद्दमि अइकलिउं जिणि उद्धरिउं चरित्तु, तिणि कारणि जिणि वीरजिणसासण कीउं पवित्तु. २ जिणि कीधउं आंबिल तणउं जावजीव पचखाण, तिणि गुणि महीयलि ऊपनउं गच्छह तवाभिहाण. ३ जिणसासण-वर-कुमुअवण-बोहण पूनिमचंद, जां रवि चंदा तां जयउ जगचंद मुणिंद. ४ जेहे श्री गुरे वाचतां श्री आचारांग, अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा चंग, जाणिउ छ जीव तणउ विचार, मनि ऊपनउ संवेग अपार, पांचइ इंद्रीय संकलई, तउ गुरु मोकलावी नीकलइ, चित्रावाल गच्छ, श्री देवभद्रगणि स्वच्छ, तिहां चारित्र उपसंपद प्रामी, तउ पच्छइ हऊउ सुविहित स्वामी, जेहरइं मोक्षमार्गि अतुल शंबल, जावज्जीव पच्चक्खाण आंबिल, एह वडगच्छरहई तेह कारण, तपगच्छ हुउं नाम पापवारण. जो चंदमंडल-कंति-निम्मल सूरि गुणमणि-सायरो, तव-नियम-संयम-खंति-मद्दव-चरण-करण-गुणायरो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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