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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह तो कृति सं.१४८४मां रचायेली मानी शकाय. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.१ पृ.५१-५२ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.१२८. – संपा.]
९० श्री वर्द्धमानस्वामिने नमः वितरतु मंगलमाला: समस्तसंघस्य वर्द्धमानजिन:,
यत्पदसेवा संप्रति कल्पलताभीष्टफलदाने. १ विमलकेवलज्ञानदिवाकर, सकलत्रैलोक्यलोकशिवशंकर, पादपीठलुठंत चउसट्ठि आखंडल, मोहांधकारसंहारमार्तंडमंडल, देवाधिदेव, त्रिभुवनकृतसेव, मनोवांछितदायक, त्रैलोक्यनायक, प्रतिवोधित-अनेक-भव्यजीवसमाज, अपश्चिम तीर्थाधिराज, श्री वर्द्धमानस्वामि श्रीसंघरहइ मंगलीकमाला करउ.
___ जसनाममंतसमरणि भव्वा पावंति सयलसिद्धीओ,
बहुविहलद्विसमिद्धो सो गोयमगणहरो जयउ. २ अनेक गुणतणउ आगर, सकल लब्धितणउ सागर, रूपसौभाग्यतणी खाणि, अमृत समान वाणि, वांछितफलदायक, मुक्तिवधूनायक, सकलजीवलोकपापतापनिर्वापण जलहर, श्री वीर पढम गणहर, श्री गौतमस्वामि श्रीसंघ प्रतिइं ऋद्धि वृद्धि कल्याण निपजावउ.
जिणसासणसोहकरो वरदंसणनाणचरणगुणकलिओ,
सुविहियगच्छसिरोमणिसिरितवगच्छो चिरं जयउ. ३ जिम देवमाहि इंद्र, जिम ज्योतिश्चक्रमाहि चंद्र, जिम वृक्षमाहि कल्पद्रुम, जिम रक्त वस्तुमाहि विद्रुम, जिम नरेंद्रमाहि राम, जिम रूपवंतमाहि काम, जिम स्त्रीमाहि रंभा, जिम वादित्रमाहि भंभा, जिम सतीमाहि सीता, जिम स्मृतिमाहि गीता, जिम साहसीकमाहि विक्रमदित्य, जिम ग्रहगणमाहि आदित्य, जिम रतनमाहि चिंतामणि, जिम आभरणमाहि चूडामणि, जिम पर्वतमाहि मेरु भूधर, जिम गजेंन्द्रमाहि ऐरावण सिंधुर, जिम रसमाहि घृत, जिम मधुर वस्तुमाहि अमृत, तिम सांप्रति कालि, सकल गच्छ अंतरालि, ज्ञानि विज्ञानि तपि जपि शमि दमि संयमि करी अतुच्छ, ए श्री तपोगच्छ, आचंद्रार्क जयवंतउ वर्तइ.
जे श्री तपोगच्छ, मानस सरोवर तणी परि स्वच्छ, आगम-लक्षण-तर्क-साहित्य-छंदअलंकार-प्रमुख सकलविद्या तणउ निधानु, श्री संयमसाधन सावधानु, दुष्कर क्रियाकलापप्रधानु, मुगतिमार्गसाधक, सर्वदोषबाधक, गुणनउ भंडार, चारित्रलक्ष्मीशृंगार, महिमहिमाविशाल, भवताप-तापित भव्यजीवविश्राम रसाल, सकलकुमतखंडन, श्री जिनशासनमंडन प्रवर्तइ छइ. अनइ मुखि तउ जीभ एक, तेहना किम बोलउं गुण अनेक, जिम संपजइ नवनवी संपत्ति, दूरि पलाइ सकल विपत्ति, मनि ऊपजइ मनोहर भत्ति, तेह कारण तउ हिव सांभलउ, श्री तपोगच्छ तणी उत्पत्ति.
श्री वर्द्धमानस्वामि तणउ पांचमउ गणघर, चउद पूर्वघर, श्री सुधर्मस्वामि, पाप नासई
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