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________________ ३३३ जिनवर्धनगणिकृत पद्यानुकारी गद्यमय तपगच्छ गुर्वावली (विक्रमना पंदरमा सैकाना उत्तरार्द्धमां – संवत् १४७८मां – जैन श्वेतांबर संप्रदायना अंचलगच्छानुयायी आचार्य माणिक्यसुंदरसूरिए 'पृथ्वीचंद्रचरित्र' नामनी गुजराती भाषामां गद्य रूपे एक रचना करी छ जेनुं बीजुं नाम कर्ताए ‘वाग्विलास' एवं पण आप्यु छे. ए रचना गुजराती भाषाना गद्यना एक उत्तम नमूना रूपे होई घणी सुंदर अने मनोरंजक छे. स्व. साक्षररत्न श्री केशवलाल हर्षदराय ध्रुवे स्वसंपादित 'प्राचीन गूर्जर काव्य'नी प्रस्तावनामां लख्युं छे के: “माणिक्यसुंदरसूरिए जूनी गूजरातीमां गद्यात्मक 'पृथ्वीचंद्रचरित्र' सं.१४७८मां रच्युं छे ते बोलीमा छे. अक्षरना, रूपना, मात्राना अने लयना बंधनथी मुक्त छतां लेवाती छूट भोगवतुं प्रासयुक्त गद्य ते बोली. माणिक्यसुंदर बोलीवाळा प्रबंधने वाग्विलास एटले बोलीनो विलास एवं नाम आपे छे.' एवा वाग्विलासना वर्गमां, उक्त ग्रंथना रचनासंवत्थी चार वर्ष पछी, एटले सं०१४८२मां अक्षयतृतीया दिने, जैन श्वेतांबर तपागच्छना यति जिनवर्द्धनगणिए रचेली, पोताना गच्छनी गुर्वावली, ते ज वर्षमां सुंदर हस्ताक्षरे लखायेली त्रण पत्रनी हस्तप्रत, सद्भाग्ये बीकानेरना साहित्यरसिक बंधु श्री अगरचंद नाहटा पासेथी विगत ओक्टोबर मासमां जे मने सांपडेली तेनी अक्षरश: नकल, काळजीपूर्वक पदन्यास करीने अत्र आपवामां आवे छे. तेनी फोटो नकल पण वडोदराना ओरिएन्टल इन्स्टिट्यूटमाथी में करावी राखी छे. आ कृति परथी विक्रम पंदरमी शताब्दीना उत्तरार्धमां - ईसवी १५मा शतकना प्रारंभमां गुजराती भाषामा विद्वानोनो केवो वाग्विलास हतो, तेमा जोडणी केम लखाती, विभक्तिनां प्रत्ययो, क्रियापदनां रूपो वगेरे कया स्वरूपमा लेखबद्ध थतां एनो सारो ख्याल आवशे; अने ए परथी जूनी गुजरातीमांथी वर्तमान गुजराती उत्क्रान्त थई ते दरमियान जे-जे परिवर्तन थयां ने उत्तरोत्तर क्रमबद्ध परिणतिने भाषा पामती गई तेना थोडा शृंखलाबद्ध अंकोडा भाषाशास्त्रीने मळी रहेशे. विषय ऐतिहासिक छे. श्वे. जैन धर्ममां थयेला अनेक ‘गच्छो' (समूहो)मांना हाल विद्यमान मुख्य त्रण नामे खरतर, तपा, अने अंचल गच्छो पैकी तपागच्छमां जैनोना छेल्ला २४मा तीर्थंकर श्री महावीर स्वामीथी मांडी तेमनी पट्टपरंपरा रूपे जे आचार्यो, अनुक्रमे कर्ताना समयमा सं०१४८२मां विद्यमान ५०मा पट्टधर आचार्य सोमसुंदरसूरि सुधीना थया तेमनी ढूंकी नोंध छे. आ पट्टपरंपरा श्वे. जैन धर्मानुयायीओमां सुप्रसिद्ध छे एटले तेमने मन आमांथी खास महत्त्वनुं बहु ओर्छ मळशे. अत्र आ कृति प्रकाशित करवामां, मारे मन, ऐतिहासिक करतां भाषाविषयक दृष्टि प्राधान्य धरावे छे.) [कर्ता सोमसुंदरसूरिना शिष्य होवानी संभावना छे. प्राप्त प्रतने प्रथमादर्श प्रत लेखीए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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