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________________ धर्मसागर उपाध्याय रास ३२९ तेमना बीजा ग्रंथो ‘युक्तिप्रकाश' अने ते पर टीका, 'प्रमाणप्रकाश' अने ते पर वृत्ति, 'तिलकमंजरी-वृत्ति', 'यशोधरचरित' आदि छे. ते जबरा वादी हता. तेणे नरसिंह भट्टने जीत्यो हतो. वादविवाद शिरोहीना नृप पासे थयो ते वखते यज्ञधर्मनी उत्थापना करी अने ब्राह्मणोने हराव्या. प्रतिमा-उत्थापक करमसी भंडारीना सवालनो जवाब आपी निरुत्तर कर्यो ने शिरोहीनो राजा खुश थयो. दिगंबर श्रमण वादीने केवली-आहार अने स्त्रीमक्तिना वादमां जीत्यो. (जओ ऋषभदासनो हीरविजयसरि रास, पृ.२९८-९९.) ___ ईडरमां विजयदेवसूरि गया ते वखते राजा कल्याणमल्ल हतो, तेणे पोताना आश्रित भट्टोनी साथे आचार्य महाराजने तर्कवाद कराव्यो. ते वखते श्री सूरिना पुण्योदयथी तेमनी पासे रहेला अने वादीना दर्परूप सर्पने संहार करनार गरुड समान पंडित श्री पद्मसागरगणिए पोतानी तीव्र तर्कशक्तिथी ते भट्ट पंडितोनो पराजय कर्यो तेथी तेओ बधाए लज्जित थई “अहो ! गुरुमहाराजनी अपूर्व गुरुता छे' एवी रीते स्तुति करतां, राजानी साथे ज सूरीश्वरना चरणकमळमां पोतानुं मस्तक मूक्यु. (गुणविजये गंधारनगरमां श्रावक शा मालजीनी तुष्टि अर्थे विजयदेवसूरि संबंधे लखेलो प्रबंध, तेनो सार श्री जिनविजये पुरातत्त्व, पु.२, पृ.४६१-६३ पर आप्यो छे ते जुओ.) कल्पकिरणावली - ए १४४८ श्लोकप्रमाण सं.१६२८मां दिवाळीने दिवसे राधनपुरमा रची पूरी करी ते कल्पसूत्र परनी संस्कृत टीका छे ने भावनगरनी जैन आत्मानंद सभाए नं.७१मां छपावी प्रकट करी छे. तेमां पोताने हीरविजयसूरिना शिष्य जणावे छे अने तेना संबंधमां प्राय: तेमना शिष्यकृत प्रशस्तिमा जणाव्युं छे के “कलिकालमां पण तेणे तीर्थंकर समान महिमा प्रकट कर्यो छे ते तेना अद्भुत माहात्म्यना दर्शनथी बधाथी गवाय छे" अने धर्मसागरजीना संबंधमां कर्तुं छे के: तेषां विजयिनि राज्ये राजन्ते सकलवाचकोत्तंसाः, श्रीधर्मसागराह्या निखिलागमकनक-कषपट्टा:. ११ कुमतिमतंगज-कुंभस्थलपाटनपाटवेन सिंहसमा:, दुर्दम-वादि-विवादादपि सततं लब्धजयवादा:. १२ "ते (हीरसूरि)ना विजयी राज्यमां सकल वाचकोना आभरणरूप, सर्व आगमरूपी सोनानी कसोटी जेवा, कुमतिरूपी हाथीनां कुंभस्थलने तोडवानी चतुराई वडे सिंह समा, दुर्दम वादीओना विवादमांथी पण सतत् जयवाद प्राप्त करनारा श्री धर्मसागर नामना (वाचक) शोभे छे.'' आ 'किरणावली'नी सेंकडो प्रत लखावनार कुंवरजी शेठनो परिचय तेमा आप्यो छे के “अमदावादवासी संघनायक सहजपाल नामना हता, तेमने मंगा नामनी स्त्रीथी कुंवरजी नामनो पुत्र थयो के जे बालपणाथी पुण्यात्मा ने धर्मकर्मपरायण हतो अने साते क्षेत्रमा धन वापरी जेणे जन्म सफल कर्यो हतो. जेमके, श्री विजयदानसूरि पासे समहोत्सव घणी प्रतिष्ठा तेणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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