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________________ ३३० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह करावी, संघपति थईने सिद्धगिरिनी यात्रा करी, शत्रुजय महातीर्थमां पद्याबंधपुरस्सर (पगथियां बंधावीने) चैत्य कराव्यु. तालध्वज (तळाजा), उज्जयनी[उज्जयंत]गिरि (गिरिनार) ए प्रसिद्ध तीर्थोनो जीर्णोद्धार को. ते संघपतिए ज्ञानावरणकर्मनो नाश करवा गुरुना उपदेशथी पोतानी पदमाइ नामनी स्त्री अने पुत्र विमलदास सहित आ वृत्तिनी पोते शतश: प्रतिओ लखावी." जंबूद्वीप-प्रज्ञप्ति-वृत्ति - आ प्रकट थई नथी. आनी एक प्रत रोयल एशियाटिक सोसायटी मुंबईमा भाउ दाजी संग्रह नं.३०९मा ४५५ पत्रसंख्यानी छे. तेनी प्रशस्ति प्रो. वेलणकरे तैयार करेल केटेलोग नं.१४५९मां आपवामां आवी छे. तेमां एम जणाव्युं छे के ते हीरविजयसूरिए सं.१६३९मां दिवाळीने दिने रची अने तेमा 'कल्पकिरणावली' प्रमुख बहु शास्त्रना रचनार सिद्धांततर्ककाव्यादि वाङ्मयरूपी समुद्रमां मेरुरूप, परवादीना गर्वरूपी पर्वतने छेदनार एवा धर्मसागर नामना वाचके तेमज वानर ऋषि(विजयविमल)ए सहाय आपी तेमज तेनुं संशोधन पाटणमां त. विजयसेनसूरि, कल्याणविजयगणि, कल्याणकुशल अने लब्धिसागरे कर्यु हतुं अने तेनी प्रशस्ति हेमविजये रची. आ परथी कल्पना थाय छे के सूरिना नामे धर्मसागर वाचके मूळमां वृत्ति रची पण ते धर्मसागरजी खंडनशैलीवाळा होवाथी रखे ने तेमां बीजार्नु खंडन होय तेथी तेनुं संशोधन उक्त विद्वानो पासे कराव्यु होय. रच्या मिति सं.१६३९ दिवाळी दिन आपी छे. ज्यारे हीरविजय अकबर पासे हता. ने आ प्रशस्तिमा जणाव्यं छे के अकबरे तेमने बोलाव्या. तेना वचनथी अकबर नृप कृपावाळो थयो ने तेणे - वध्या न देहिन इहेति वदन् वचांसि दत्ते स्म डामरसर: शमि-सिन्दुराणाम्. "प्राणीओ वध्य नथी एवां वचन वदता हवा, शमवंतोमां आगेवान (एवा हीरसूरि)ने डामर सरोवर आप्यु - अर्पण कर्यु.'' धर्मसागरजीना बीजा ग्रंथो - गुर्वावली-पट्टावली सवृत्ति, पर्युषणाशतक सवृत्ति (वे. नं.१८४७, ३६ पत्रनी प्रत रो. ए. सो. मुंबई पासे छे) सर्वज्ञशतक सवृत्ति (के जे ग्रंथे पण मोटो कोलाहल उपजाव्यो हतो), वर्द्धमान-द्वात्रिंशिका (नवरसारूसाज वर्षे (?) १६६९मां ? प्रवर्तक कांतिविजयजी वडोदरा भंडार), षोडशश्लोकी-गुरुतत्त्वप्रदीपदीपिका सविवरण (बुह. नं.३९९) वगेरे छे. आ पैकी 'गुर्वावली'मां तपागच्छना आचार्योनी हीरविजयसूरि सुधीनी परंपरा आपी छे. तेनी एक प्रतनी अंते जणावेलुं छे के हीरविजयसूरिनी आज्ञाथी ते विमलहर्ष, कल्याणविजय, सोमविजय अने लब्धिसागरगणिओए मुनिसुंदरकृत गुर्वावली, जीर्ण पट्टावली, दुःषमा संघस्तोत्र यंत्र वगेरे साथे सरखावी. आ सं.१६४८ना वर्षमा अमदावादमां तपासी हती. लब्धिसागर ते धर्मसागरना शिष्य हता. मुनिसुंदरसूरिकृत 'उपदेशरत्नाकर सवृत्ति'नी 'संवत् १६७२ वर्षे सागानगरे महेत्याध्याय श्री लब्धिसागरगणि वाचन कृते' एम लेखक प्रशस्तिवाळी प्रत खेडाना संघना भंडारमा १९६ पत्रनी छे. हीरविजयसूरिनो स्वर्गवास - सं.१६५२. विजयसेनसूरि खंभातमां - सं.१६५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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