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________________ धर्मसागर उपाध्याय रास ३२७ उपाध्यायपद - तेनुं वर्ष सं.१६०८ माघ सुद ५ छे. (जुओ हीरसौभाग्य, सर्ग ६ श्लोक ७६) शिवपुरी - एटले सिरोही. त्यां हीरविजयसूरिने आचार्यपद सं.१६१०. अहिमनगर - मारवाड- नागोर. विद्यासागर - नामना एक मुनि प्राय: विजयदानसूरिना शिष्य हता. ए विद्यासागरना शिष्य देवचंद्रे बावन कडीनी ‘सुकोसल मुनि सझाय' सं.१६०२ना आसो मासमां रची. संवत सोत दोय आसो मसवाडइ, थुणीया दोय मुनिपुंगवा ए. ५१ श्री विजयदानसूरींद श्री विद्यासागर, सेवक देवचंद इम भणइ ए. ५२ परंत आरासमां उल्लेखित विद्यासागर तो जीवराज पंडितना गरुभाई जजणाय छे. ते विद्यासागर श्रुतसमुद्रगणिना एक शिष्य हता अने तेनी शिष्यपरंपरा नीचेनी लेखकप्रशस्ति पाटणना हालाभाई भंडारमा दाबडा ७१मा ‘सप्तति'ना टबानी प्रति छे तेमांथी मळे छे. “सं.१७३३ वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्लपक्षे प्रतिपदा चंद्रवासरे लिखितं अवंती समीपे अबदालपुरा मध्ये तपागच्छे पंडितश्री श्रुतसमुद्रगणिशिष्य वाचकावतंसशिरोमणि महोपाध्यायश्री विद्यासागरगणिशिष्य पंडित श्री सहजसागरगणिशिष्य श्री हेमसागरगणिशिष्य पंडित श्री कीर्तिसागरगणिशिष्य पं. श्री हर्षसागरशि. श्री धीरसागर ग. विनेयाणु पंडित सुविहित साधुशिरोमणि पंडित श्री मानसागर ग. पुण्यसागरेण लिपीकृता मुनि उदयसागर पठनार्थं.'' आम सागरांत नामोनी हार अनुक्रमे चाली आवी छे. आमांना सहजसागरना शिष्य हाथी गणिना शिष्य प्रेमसागरगणिए सं.१६५४ना जेठ वद १ शुक्रवारे ज्ञाताधर्मकथांग सूत्रनो टबो छजाक मध्ये पूर्ण कर्यो. तेनी प्रत जैन एसो. इंडिया पासे १७ पानांनी छे. तत्त्वतरंगिणी - आ ग्रंथनी वृत्तिनी प्रत वाडी पार्श्वनाथना भंडारमा १५मा दाबडामां २४ पानांनी छे. तेनी अंते आ प्रमाणे लखेलुं छे के: "श्री पत्तने भांडागार प्रति:. अस्य ग्रन्थस्य कर्ता श्री अणाहिल्लपतने श्री कर्मसुंदरसूरि श्री स्थिरचंद्रसूरि श्री हर्षविनयसूरि श्री कल्याणरत्नसूरि श्री सिद्धसूरि श्री पद्मानंदसूरि श्री उदयरत्नसूरि श्री विम्लचंद्रसूरि श्री विद्याप्रभसूरि श्री संयमसागरसूरि श्री महीसागरसूरि श्री विनयतिलकसूरिप्रमृतिभिः सर्वगच्छमुनिभिः श्री जिनशासनाबहिष्कृत: उत्सूत्रप्ररूपकत्वात् धर्मसागर इति. संवत् १६१७ वर्षे कार्तिक सुदी सप्तमीदिने शुक्रवारे श्री पत्तनमध्ये.'' एटले आ ग्रंथ सं.१६१७ पहेला रचायो हतो अने तेनो बहिष्कार सर्वे सूरिओए मळी को हतो. ते पैकी उदयरत्नसूरि ते पिंपलगच्छना हता के जेनो धातुप्रतिमा लेख सं.१६१७नो बु.१मां लब्ध छे. नेमिसागर अने भक्तिसागर - आ बंनेए धर्मसागरना स्वर्गवास पछी धर्मसागरना मंतव्यो माटे पूरी झुंबेश उपाडी हती अने सागरपक्षनां ममत्वने लीधे तपागच्छना मुनिमंडलमां भारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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