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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह पन्नर मण सूकडि माजनइ, सारू अगर मण २ (बे) इम भणइ, चूआ कपूर , कस्तूरी सही, तस परिमल चिहुं दिसि महमही. १७४ एक कुतिक तिण ठामइ हवउं, दहन देती वेलाइं नवं, चमरी जेवी गाइ अभिराम, देइ प्रदि(क्ष)णा रही तीण ठाम. गाइ दुही दूधइ सींची चय, जे आवइ ते तिहनइ दुहइ, दुहीं लिगाउ इ गाइ तणु, निर्मल थाइ (जि)म देह आपणुं. १७५ लोक लखि देखी ईम कहइ, कामधेनु आवी सद्दहइ, थारिआमाहि (?) तरणू नवि होइ, गाइ जाती नवि हो(इ), देखइ कोइ पूर्व पुण्य प्रेम आवी, गा देखी संग बोलइ निरमाइ, होइ सर्व एहनइ सिष्यनी वृद्धि, एहना शिष्य[नइ] होसई संधि[सिद्धि ?]. १७६ श्री धर्मसागर वाचकवरू, वादीवारण सीहो जी, जे गुण गाइ गुण ताहरा, निर्मल होइ तस जीहो जी. धन जननी [जे] जिनमीउ, जेह, जगि जस जासो जी, जस मुख विमल कमल सदा, भगवती भारती वासो जी. १७७ पाटण नयर नामइ....
पर्ति आ रासमां केटलीक व्यक्तिओ, ग्रंथो वगेरेनो उल्लेख करेलो छे ते पैकी जेना संबंधमां कंईक विशेष माहिती प्राप्त थई छे ते नीचे रजू करवामां आवे छे :
लाडोली - धर्मसागरनुं मोसाळ महेसाणा छे ते जोतां, एमर्नु आ जन्मस्थळ ते मारवाडर्नु लाडोल नहीं पण वीजापुर पासेर्नु लाडोल होQ जोईए ए वीरमगामना वकील छोटालाल त्रिकमलाल पारेखनी वात बराबर छे. ए रीते धर्मसागर गुजराती ठरे छ
जीवराज - ते जीवा ऋषि. ते लक्ष्मीभद्रगणिना शिष्य आनंदमाणिक्यगणिना शिष्य श्रुतसमुद्रगणिना एक शिष्य हता. आ श्रुतसमुद्रगणिने सं.१५५९मां समवायांगनी प्रत लखावी भेट थई हती. (हाला भं. दा.७) भावविजय उपाध्याय कृत 'षड्त्रिंशत्जल्पविचार' ए नामना चर्चाग्रंथमां जणाव्युं छे के “तपागच्छे श्री विजयदानसूरिराज्ये पं. जीवर्षिगणि विनेया: श्री विजयदानसूरिपाठिता बहुश्रुता इति लोकै: बहुमानवचना: श्री धर्मसागरोपाध्याया आसन्.'' ('विजयतिलकसूरि रास'नी प्रस्तावना)
चांदसिंह – देवगिरिना वणिक श्रावक- नाम 'हीरसौभाग्य' देवसी (देवसिंह) आपे छे (सर्ग ६, श्लोक ३९-४०) ते खरूं लागे छे. अत्र लहियानी भूल लागे छे. 'हीरसौभाग्य'मां वणिकनी पत्नीनुं नाम जसमादेवी आप्युं छे ते अहीं जसमाई छे.
नाडलाइमां पंडितपद - एनुं वर्ष सं.१६०७ छे.
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