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धर्मसागर उपाध्याय रास
३२५ नवकार गणतां रे नवमी मध्यरात्रइ, पाम्या अमरविमानो रे; जयजय नंदा सुररमणी करइ, देव करइ गीतगानो जी. भवि० १६० लब्धिसागर गुरू बोलइ इणी परि, भगवन जग जाणो जी; कांइ रे विछोडी अम्हनइ तुं गयु, तुं हुतु अम्हनइ त्राणो जी. लब्धि. १६१ संशय पूर्छ रे केहनइ तुझ विना, संशय टालणहारो जी; सहुना संशरा टाल्या तई घणा, कही(आ) शास्त्रविचारो जी. लब्धि. १६२ हयी(?) आपी दैवइ सुं करूं, कुण करस्यइ माहरी सारो जी; एहवा पुरूषनइ तुं लेइ गउ, हुतु अम्हनइ आधारो जी. लब्धि. १६३ बालपणाथी रे हुं तइ पालीउ, हिवइ काई दीधउ छेहो जी; निस्नेही तुं अम्हे जाणीउ, जाणता अधिक सनेहो जी. लब्धि. १६४ अंतसमय तई कई नवि चित्ते धरूं, राखुं निर्मल ध्यानो जी; भगवन भगवन हुँ केहनइ कहुं, तुं गुणह निधानोजी. लब्धि. १६५ अहनिस थोडी थोडी [घडी घडी] नाम.जपुं, भगवंत भली परि जाणो जी; थोडी घणी जे(ह) सेवा थई, ते तु चित्तमाहि आणो जी. लब्धि. १६६ घj घणुं भगवन तुझनइ सुं कहुं, तुं छइ दीनदयालो जी; (एक) वार दरिसण देखाडवू, आणी रंग रसालो जी. लब्धि. १६७
रामगिरी
धन धन धर्मसागर उवझाय [जेहनइ] नामइ नवनिधि थाइ, कवियण कहइ गुण केता कहुं, जेहना गुण- पार नवि [लहुं]. १६८ ............... वइरकुमार, थूलभद्र धन्नु अणगार, गोयम गणहर सेवउ सहु,
सहुं. १६९ धन धन नयरी त्रंबावती, जाणइ इंदपुरी सोहती; तिहां वसइ ववहारी कोडि,.....
जोडि. १७० चतुरपणइ चउमासुं रह्या, गुरूदरिसण देखी गहगह्या, श्री ... अति घणा,
खरचइ रंगई द्रव्य आपणा. १७१ अवसर आवी अणसण करी, [मनि] निर्मल ध्यान जि धरी, पूर्व रिषिना चरीअ अणुसरी, श्री गुरू पुहुता देवनी पुरी. १७२ मांड(वी) ....खंडनी जाण, श्रावक करई तिहां महामंडाण, नवई अंग प्रभु पूजा करई, अवसर जाणी (वित्त) वावरइ. १७३
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