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________________ ३२० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह सीरोही जीराउला पास, थी पोह(त)वा य आस,(?) सूरति नयरइ चउमा(स), संघ आगलि धर्मप्रकास. ९२ जयवाद वरत्यो तिहां, राय कल्याण सनासना' सभा जीहां, चउथइ पजुसण करवू, हिअडइ सहुइ ए धरQ. ९३ दुहा विनय करी विद्या भण्या, श्री गुरू पासई जेह, तेह तणां नाम हुँ कहुं, जिम हीम निर्मल देह. ९४ राग देशाख विमलसागर बुध बुद्धिनिधान, ज्ञानविमल पंडित परधान, विजयकुशल पंडित माहिं सोहई, विबुध विवेकविमल मन मोहइ. ९५ विनयवंत विनयसागर कहीइ, तेहनी बुद्धिनो पार न लहीइ, उदयवंत दयारूचि पंडित, साधु तणइ गुणइं मंडित. ९६ पद्मसागर पंडित परसिद्ध, लब्धिसागर बहुलब्धि-समृद्ध, गुणसागर गाजइ जिम दरिउ, बुध . दरिसन(सा)गर गुण-भरिउ. ज्ञानसागर ज्ञान वखार्पु, श्रुतसागर गाजइ जम दबुसात्तो त्राणुं, (?) विबुध विवेकसागर वेरागी, मेघसागर पंडित सोभागी. ९८ माणिक्यसागर महिमावंत, पंडित ए गिरूउ गुणवंत, इत्यादिक पंडित नी(पा)या, कविजन कहइ मई हरखई गाया. ९९ जंबूद्वीप पन्नत्ति सूत्र, तेहनी वृत्ति करी पवित्र, किरणावली कल्पसूत्रमा जाणउ, प्रव(च)नपरीक्षा हिअडइ आणउ. १०० तत्त्वतरंगिणी ग्रंथ . प्रमुख, जे वांचइ पामीजइ सुख, एहवा ग्रंथ कर्या अनेक, हिअडइ आणी वारू विवेक. १०१ अनुकरमइ विहार करंता, ठामि ठामि भविअण बोहंता, अमदावाद आव्या गणधारी, जगगुरू मोटो जगि जयकारी. १०२ साह मुराद तिहां बलवंत, वैरी तणो जो आइणा (जे आणे) अंत, तिहां तेडावीअ श्री सूरीस, धर्म(म)र्म पूछई अ(ह)नीस. १०३ तगबन [भगवन] भली पइरई परकासइ जीवदयाइं तस चित वासइ, श्री गुरू धर्मसागर तिहां आइ वंदइ, बिहु जणनां मन आणंदइ. १०४ १. 'सनासना' शब्द वधारानो लागे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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