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________________ धर्मसागर उपाध्याय रास वलतुं भगवन धर्मसागर Jain Education International इम प्रकास्युं, विमल वात राया-स्युं,(?) बोलइ वाणी, त्रिकाल वंदना होजो नांणी. १०५ दूहा महिअलि मोटो सुखकरू, हीरविजय सूरिद, शेत्रुंजे यात्रा भणी, चालई परमानंद. १०६ जगगुरू जगमाहिं जाणई, साध्वी संघवी एक, जेणई करावी यातरा, निर्मल कीधी देह. १०७ श्री गुरू वांदी चालिआ, चतुरपणई चित जांण, वटपद्रनयर पधारिआ धर्मसागर गुरू भाण. १०८ राग मारूणि श्री गुरू श्री धर्मसागर, प्रणमइ सुरनर नागर, आगर नानाविह गुण ए. १०९ हीरविजयसूरि तपागछपति, वंदइ सुरनर-यति, तक्तिर (?) पतिसाहि अकब्बर छात्तिउ (?). ११० तेह तणइ आदेशईं, चालइ कुंकुण देशई, होश्यइ ए सुरति नयर आनंद घणा ए १११ त्रिजग तां मन मोहई, हीरविजयसूरि सोहइ, पडिबोहे भविजनना मन रंग- स्युं ए ११२ श्री ( उ ) ना नयर मनोहरू, चउमासुं रह्या गणधरू, सुखकरू जिम सायरनई चंदलो ए. ११३ श्री गुरू अंतसमय जाणी करी, ए वात चितमां धरी, अति खरी एह समय अणसण तणो ए ११४ भाद्रव सुदि एकादसी, देव कोडि तिहां उलसी, as होइ[स] एम अधिपति विमाननो ए. ११५ भगवनजी स्वर्गपुरी, पधारिआ एह वात सुणी करी, श्री धर्मसागर बोलइ दुख धरी, आंसुभरी हे हे देव किस्युं कर्तुं ए. ११६ अम बिहुं केरी जोडली, देवइ किधी खोडली, को वलि एहवो नहि मिलइ जगगुरू ए. ११७ ३२१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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