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________________ धर्मसागर उपाध्याय रास ३१९ दुहा सकलवादि-शिर तो खरू[शेखरु], महीअलि महिमावंत, जास नाम श्रवणे सुणी, वादी वाद त्यजंत. ७८ जयवादि जगि आगलो, धर्मसागर उवझाय, जाण वाकोनिर (वीकानेर) तिहां, मोकलइ तपगछराय. ७९ (ढाल चालु) सहु आगल(म) वाचना लेइ, निज गुरूनइ परदख्यिण देइ, चालइ गुरूजी गहगहता, शुवाकांरीर (वीकानेर) पोहता. ८० मंत्रीसर देवो मेहतो, नीतानीतनु वाद करतो, सहसारण कुमत-निधान, तस न्यान तणे श्रुतिमान. ८१ तेहनइ समझावा वालइ, नीतानित्य संशय टालइ, मोंटो राय कल्याण कहिड, तस राजसता जस लहिड. २ प्रतिष्ठा चित्रोड नयरिं, कीधी गुरूजी भली परिं, परवादिं साथि वाद, करि तस उतार्या देव नाद. ८३ जयवाद वरत्यो जालोरइ, खरतर इणी परइ, व्यवहारीनई देइ दीक्या, सीखवइ श्री गुरू शिख्या. ८४ प्रतिष्ठा तिहां वलि जाणो, सहु संघ हुउं सपराणो, नाउ(ड)लाई प्रतिष्ठा मोटी, श्रावक खरचइ धन कोटि. ८५ पूण्ययोगइ पूज्य पधार्या, कुमतइं पडता जन वार्या, बहु लोकना संशय टाल्या, वीजामती तिहांकणि चाल्या. ८६ अनुकरमइ गूजर देशई, आवइ गुरूनई उपदेशइ, पाटणनयरइ परसिद्ध, खरतर-स्युं जयवाद सिद्ध. ८७ व्यवहारी बहु धनवंत, कीधां काम घणां महंत, दीख्या लीइ अख्या गणीआ, श्री सहगुरू पासइ भणिआ. ८८ अहिमन्नग(२) चउमासई, आवइ गुरूजी उलासइ, तिहां दीख्या लेई धनवंत, वैरागी विद्यावंत. ८९ श्रीअ हीरविजयसूरीस, जस नामइ सु न(म)इ सीस, तेह तणो आदेश पामइ, पोहचइ जेसलमेर गामइ. ९० हरराज रावल तिहां राजइ, मोटा वैरी तणा मद भाजइ, तेहनी सभा माहिं दीपइ, धर्मसागर वादिनइंजीपइ. ९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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