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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह दसक भट्ट माहि ज महि(मा) वाध्यु, देवगिरि माहिं जयवाद साध्यु, (आंतरीक पासनाथ जुहारी, चतुरपणइ चालइ श्रुतधारी. ६४ श्री गुरुचरण आवीतइ वांदे, सकल संघना चित आणंदे, (ना)इडलाइ (न)यरी परसीद्ध, पंडितपद तिहांथी थापन कीध. ६५ श्री विजयदानसूरि गणधारी, मोकलइ मेडता नयर मज्झारि, शास्त्र चिंतवज्यो हिअडइ आणी, चउमासु मुंकइ हित जाणी. ६६ चउमासुं करी वांदवा आवइ, श्री गुरूनइ ते अति भावइ, मनि ठवइ ऋषि बे मोटा मुनि कहिइ, श्री गुरू जंखइ काउसगि रहिइ. ६७ काउसगि ऋषिबालो एहवं निरखइ, श्री विजयदान सूरीसर हरखइ, तिण मोटां पात्र अमूल, तेह तणइ तिरे मूंक्या फूल. ६८ हीरहर्ष माथि दोय फूल, मुनिवर देखइ अति बहुमूल, धर्मसागर राजविमल कहिई, तेह तणइ शिर एक ज लहिइ. ६९ सपन विचारइ करइ भगवन्न, उवझाय-पद योग्य एछइ तिण श्रुतावास (श्रुतापन्न), शुभवासर शुभवेला जाण, उवजाय-पद तिण थापइ नाण. ७० आदीसर देहरा मझारि, त्रिण जणां पद दीधां सार, संघ सहु नडुलाइ केरो, उच्छव महोच्छव करइ अधिकेरो. ७१ श्रीपूज केरो आदेश पामइ, विचरइ श्री गुरू गामोगामइ, श्रावकना समकित उजुआलई, कुमतई पोउतो लोकनई वारइ. ७२
दुहा शिवपुरी आवइ विचरता, सकलसूरि-शिरताज, आचार्यपद थापवा, हीरहर्ष मुनिराज. ७३ तेडावइ तपगछधणी, धर्मसागर उवझाय, प्रमुख साधु तिहां मिलइ, आचारयपद थाय. ७४
राग सामेरी आचारयपद तिहा दीर्छ, संघ चउविहनइ सुख कीर्छ, करइ संघ महामंडाण, धिन जीवं ए परमाण. ७५ श्री हीरविजयसूरि नाम, दीधुं एहवं अभिराम, चिर जीवो ए भगवंत, बोलइ गिरूआ गुणवंत. ७६ श्री हीरविजयसूरि राय, श्री धर्मसागर उवझाय, श्रीपूज्यइं वाचना दीधि, पाटण नयरि परिसिधि. ७७
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