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धर्मसागर उपाध्याय रास
साह
विद्याइ
हिअडइ
वीणा शंख मनोहर दीपइ, झल्लरी नादई छाजइ, नानाविध वाजां तिहां निसुणी, कुमतीना मद भाजइ. ५० इइ मलाइ दीख्या लेवा, आवई श्री गुरू पास, सात जणा- स्युं दीख्या लेतां, पोहचइ मननी आस. ५१ विनय विशेष करइ गुरू केरो, भणई भली परि शास्त्र, श्री पंडित जीवराजनइ एहवां, मिलिआं मोटां पात्र. ५२ नाम दीई तिहां श्री गुरू सुंदर, धर्मसागर गुणधाम, विमलसागर बिजा बंधवनुं, नाम ठवइ अभिराम. ५३ विजयदानसूरि कहनइ, पंडित श्री जीवराज, धर्मसागर निज सीसनइ, बहुली बुद्धि देखी करी, श्री धर्मसागरनइ सदा शास्त्र भणावइ सार. ५५ जैन शास्त्र थोडइं दिनइ, भणीआ दो निज सीस, हरहर्ष धर्मसागरू, पोहती मनह जगीस. ५६ योग्य जाणी दोइ सीसनइ, मोकलइ तपगछराय, देवगिरी भणवा हइडइ हर्ष न माय. ५७
मुंकइ
भणवा काज. ५४ विजयदान गणधार,
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राग देशाख
तिहांथी रे चालइ गुरूनइ वांदी, शकुन भलेरे मनि आणंदी, आवता जाणी साह चांदसिंह, तस घरण (णी) जसमाइ अबीह. ५८ बिहुं जणनइ आणंद ज थाय, आपणनइ हुउ गुरूनुं पसाय, दिन थोडई देवगिरि मझारि, पोहता शुभ लगनइ शुभ वार. ५९ दूहा
चांदसी
करी
भणी,
हय
डी करी, मेल्या भट्ट
आगलो, विध
जगि
इम
कहइ,
লिऊ,
मुहडइ मागो ते
जागतो,
जसमादे जस दिवस प्रति एक हुन तिहां, दोय जण तिहां शास्त्र अभ्यास करइ बिहुं वरसइ वर
विरीआ,
शास्त्र
शीलवती
चांदसींह
भणवो
माहि
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अनेक,
एक. ६०
प्रधान,
३१७
जाण. ६१
लीह,
आपइ
साह
त (भ) ला परि[ धरि ], उलास,
सो
आणंद
चांदसींह. ६२
भरीआ. ६३
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