________________
३१६
प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह वलतुं कुंअर इम भणइ, सुणि माडलि ! ए छइ अथिर संसार, मोरी माडलि. धण कण कंचण मोतीआं, सुणि. ए छई सहुअ असार, मोरी० ३६ एहवं जाणी चेतीइ, मोरी० लीजइ संयमभार, मोरी० धनजी वचन निसुणी करी, [सुणी.] वनजी विचारई सार, मोरी० ३७ बिहुं बंधव समझी करी, सुणी. लेस्युं अहो[मो] दोइ साथि, मोरी.
अम्हे दोइ संयम लीजई, सुणी. पंडित जीवराज हाथि, मोरी० ३८ वलतुं माडी इम भणई, मनमोहन, तुम विण अम कुण काज, मन. सहुइ संयम लीजीइ, मन० कीजीइ अविचल राज, मन० ३९
दुहा
इण अवसरि तिहां आविआ, विसलनयर मझारि, उपशमरस भरपूरीउ, करवा जन-उपगार. ४० जिणवर-आण हइए धरइ, वइरागी वडवीर, जास नाम हिअडइ धरइ, ते पामइ भवतीर. ४१ जस दरिसन देखी करी, बूझइ भविअण-वृंद, वाचक विद्यासागरू, धिन धिन एह मुणिंद. ४२ श्री गुरू विद्यासागरू, मूरत लीइ विशेष, श्री संघ रंगिं मोकलई, सघलइ नयरि लेख. ४३ संवत पनर पंचाणुइ, माह मास लसंति, सुकल पखि दशमी दिनई, संयम लीइ मन-खंति. ४४
राग असाउरी सकल संध तिहां आवइ हरखिइं, दीख्या-महोछव काज, मोहन मुरति देखी बोलइ, धिन धिन धन वनराज. ४५ सामिवच्छल सारां कीजइ, दीजइ फोफल-पान. इणी परी संयम [सकल ?] संघ संतोषी, याचकनइ दइ दान. ४६ वरघोडि वर घोडइ चढीआ, वाजइ ढोल-निसाण, सोहासिण आसीस तिहां, चिर जीवो जिहां भाण. ४७ भुंगल भेरी नफेरी वाजा, पंचशबद तिहां वाजइ, तंती निविल ताल भली परी, धप धप मद्दल राजइ, ४८ सरणइ-सर सुंदर साध्वा(?), निसुणी जलधर लाजइ, दमदम ढोल दद्दामा नादइ, ... अंबर गाजइ, ४९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org