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________________ धर्मसागर उपाध्याय रास सकल विद्या दिन थोडई, भणिअ कुंअर कोडईं; दिन दिन योवन सोहई, रमणीनां मन मोहइ. २४ मुंसाल महीसाणा गामई, दादो वरसिंग नामई; कुंअरनई तिहां तेडावई, धनजी वनजी ते आवइ . २५ मिलिआ माजन लोक, दाम लीउ तुमे रोक; अम घरि कन्या छइ सारी, विवाह करो व्यवहारी. २६ (दूहा) Jain Education International इइ अवसर आवई तिहां, श्री पंडित जीवराज; गोयम गणहर समवडि, सकल-संघ-हित काज. (ढाल चालु) श्रीपूज्य आदेशकारी, सकलजीव-उपगारी; चउमास महीसाणइ रहिआ, श्री संत हीयडइ गहगहीआ. २८ तेह तणो उपदेशसार, जाणे अमृतधार; संसारसरूप जाणी, वेरागि मनमांहि आणी. २९ श्री गुरूचरणि चारित्र, लेइ कीजइ जनम पवित्र; (i) दी श्री गुरूपाय, हइयडइ हरख न माय. ३० दुहा निज जननीनइ विनवई, वीनतडी अवधारि; संयम-रामा रंगि वरस्युं, वेगि विचारि. ३१ निज जननी निसुणी करी, नयणि नीर झरंति; साह गोधानईं जइ कहइ, हइडइ दुःख धरंति. ३२ साह गोधो वलतुं भणइ, कीजइ एक उपाय; जिम सहूइ कुटुंबनइ, हइडइ हरख ज थाय ३३ राग सिंधु असाउरी प्रेम धरी माय इम बोलइ, मनमोहन, राखो घरनुं सूत्र, मन० तुं छइ कुंअर लहुअडो, मन० इम कां विचारईं पुत्र, मन० ३४ तुझ विण किम दिन लीजीइ, मन० तुं छइ अम आधार, मन० चारित्र वछ ! छइ दोहिलं, मन० जेहवी खांडाधार, मन० ३५ ३१५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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