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________________ ३१४ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह उपशमरसको सागरू, धर्मसागर गुरूराज; तास तणा गुण गायता, सीझई सघलां काज. ४ राग गोडी जंबूद्वीप मझारि खेत्र भरतमांहि, गूजरदेश वखाणीय ए. ५ तिहां नयरी नितरंग नामई लाडोलि, धनदपुरी धनइं जाणी ए. ६ गढ मढ पोलि सुचंग मोटां मंदिर सुंदर, तेजइ दीपतां ए. ७ इंद्र-विमान समान जिनवर-प्रासाद, कनकाचलनइ जीपता ए. ८ तिहां चउरासी चउटां चउपट चिहुं दिसिइं, चतुर लोकनां चित हरई ए. ९ वाडी नइ वनखंड वावि सरोवर, सुरवर तिहां क्रीडा करइ ए. १० व्यवहारी धनवंत संत सोहई, सदा धर्मवंत धुरंधरा ए. ११ रूपईं रूअडी रामा सीलइ चमकंति, निज पतिनइं सुहंकरा ए. १२ उसवंश-सिणगार व्यवहारी वडो, साह रांको तिहां वसइ ए. १३ तस घरणी अरखाइं सीलई सीता ए, रूपई रंभानई हसइ ए. १४ सुखभरी सूती सेजिइ सघन सोहामणुं, मयगल मोटो मलपतो ए. १५ सपन लही ततकाल आवई पिउ पासई, कहइ गज दीठो दीपतो ए. १६ प्रमदइं करी प्रमदास्युं परगट पिउ बोलइ, सुत होस्यइ तुम कुलतिलो ए. १७ शुभ लगनई शुभ योगिई पूरई मासिं ए, सुत जनमउ तिहां गुणनिलो ए. १८ दूहा संवत पनर उगणासीईं, माह मास रविवार; शुकल पखि छठी दिनई, हुउ ते हर्ष अपार. १९ जनममहोछव अति भलो, खरचई कनकनी कोडि; याचकजन सहु हरखिया, गुण बोलइ कर जोडि. २० अनुकरमईं सुत वाधतो, बीज तणो जिम चंद; सकलकलागुणपूरीउ, मोहणवल्लीकंद. २१ राग धन्यासी अनुकरमई कुंअर वाधइ, सकल मनोरथ साधई; माय-मनि हरख न माइ, गुणीजन गुणगण गाइ. २२ सुतनुं दीधुं ए नाम, धिन धनजी अभिराम; कुंअर पांचमइ वरसइ, भणवा मुंकइ उल्लासई. २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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