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________________ ३०७ जिनविजयकृत क्षमाविजय गुरु सझाय [क्षमाविजय स्व. सं.१७८६. कृति सं.१७७१मां रचायेली छे. जिनविजय जीवनकाळ सं.१७५२थी सं.१७९९. एमणे 'कर्पूरविजयगणि रास' 'क्षमाविजय निर्वाण रास' वगेरे अनेक कृतिओ रची छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति भा.५, पृ.३०४-०९ तथा गुजराती साहित्यकोश खंड १, पृ.१२९, कृतिनी हस्तप्रतनो अहीं निर्देश नथी. 'जैन गूर्जर कविओ' मा आणंदजी कल्याणजी भंडारनी सझायसंग्रहनी प्रतमां आ कृति नोंधायेली छे (पृ.३०८-०९).] दूहा समरूं भगवती भारती, वाहन जास मराल; श्री गुरूना गुण गायवा, यो मुझ बुद्धि विशाल. १ सुर-चिंतामणि सुरगवी ईत्यादिक के कोडि; मनवंछित जो पूरवे, किम आवे गुरू-जोडि. २ गुरू दिनयर गुरू दीप सम, गुरू वन घोर अंधार; भवसायरमां बूडतां दीयइ श्री गुरू बाथ. ४ तिण कारण भवि सज्ज थई, सुणजो तास चरित्र; सुणतां श्रवण सुख हुवे, भणतां जीह पवित्र. देशी नणदीनी वीर जिणेसर पय नमी, गास्युं गुरूगुणरास, मोहन; सरसती मात मया करी, कीजे मुझ मुख वास. मो. १ श्री गुरू गुणनिधि गाइंयइ आंणी उलट अंग; दुखदोहग सब वीनिगमें, लहीयई सुख अभंग, २ भरतक्षेत्रमांहि. सोभतो, देस मारू अभिराम; तसु सिर तिलक समोवडि, गाम पोयंद्रा नाम. ३ वडवखती व्यवहारीओ, कलुओ साह तसु नाम; तसु घरणी करणी सती, बाइ वनां गुणधाम. मो. श्री. ४ हेजें दंपति तिहां वसइ, भोगवे भोगविलास; अनुक्रमे सुत एक जनमीयो, सदगुणनो आवास. ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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