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________________ ३०६ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह ३. केशवदासकृत सवैया जिनचंदकी वाणि सुणीसु अकब्बर-वंस-उद्योतकरा, जसु पाय नमइ नरभूप अनूप सरूप महोदय भाग्यधरा, मुनि केशवदास उलास कहइ प्रतपउ गुरू जां सूर भूमिधरा, जिनसासनमइ जिनचंद भट्टारक अउर भटारक पेटभरा. १ जिनचंद मुणिंद महामुनि राज जयउ जस वाणि पियूषघटा, कुमती-मदमत्त-मतंगज-कुंभ-विदारण (जैसी) सिंहघटा, मुनि केशवदास नमइ गुरूकुं जिण जीतउ काम महासुभटा, जिनसासनमइ जिनचंद भट्टारक अउर करई सवि पेट-नटा. २ अकब्बरसाहि कहइ पतिसाहि भलउ जिणचंद सुरिंद जती, खरतरगच्छपती जस वाणि सुणी सवि दूरि गए कुमती, तसु नाम महानिधि सिद्धि करइ, जसु पाय नमइ सूर भूमिपती, मुनि केशवदास कहइ जिनचंद जयउ जिनसासन-छत्रपती. ३ दरसण सुखकर विकटसंकटहर, दरभर ताप पाप नासी गयउ दूरको, कंचणवरण काय सव नर सेवइ पाय, तह बहू सुख थाय सुभ भरपूरको, सकल कलानिधान, जंगम जुगप्रधान, नीकउ वडउ भाग भइयो जिनचंदसूरको, कहत केशवदास मुझ मति पूरउ आस, जिनचंद वंदवारू वंदन, सनूरको. ४ (मुनिश्री जशविजयना संग्रहमां) [जैनयुग, वैशाख–जेठ १९८६, पृ.३९६] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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