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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
वस्तु शाहि भेजइ शाहि भेजइ तबही फुरमान, हीरविजय सूरिराजकुं काज काम फरमाहु, निसिदिन विजयसेनसूरि चंदके हम चकोर चाहइ यु दरिसन, लाभ बहुत लाहुरकुं भेजहु निज पटधारि, शत्रुजय गिरिनारिकी गहु बगसीस उदार. ४४
वस्तु
पट्ट दिनकर पट्ट दिनकर तब ही समझाइ, गच्छभलामण देइ सिरि ठवि हाथ लाहुरि चलाए, भट्टारक पाटण नयरि चतुर चित्त चउमासि आए, हीरविजयसूरि आवतई नगरि मंडाया जंग, कल्पद्रुम पाटणि फल्गु लाहो ल्यइ सहु संघ. ४५ एणि अवसरि एणि अवसरि दिवसि केतेक, लाहुरथी वद्धामणीलेख लेइ बहु लोक आए, जगगुरु तुम्ह ये पट्टधार पातिसाह मन खरे भाए, जे जिनशासन-काम किअ श्री विजयसेन गणधारि, सावधान सहू संभलो सकल संघ जयकार. ४६
राग गोडी जब देख्या बे शाहि अकब्बरि श्री विजयसेनसूरिंदा, बडे तपसी बे कहिअ बुलाए, दिल सुखी भये नरिंदा, दिल खुसी भये नरिंद तबही बयण सुणे जब नीका, धन्य धन्य अकल हीरकी जिनि तुहि दीना तपगच्छ-टीका, जब परमात्मसरूप निरूप्यउ भट्ट भये तब फीका, जगि जयकार कर्यउ जिनशासनि, धन्य पटधर हीरजीका. ४७ दिखलाया बे नंदिविजय बुध सुंदर अष्टवधानां, शाहि आपइ बे बयत लिखाए पढत यू भये हरानां, एक बेर पढि फेरि सुणावत शाह शिफति करइ भारी, द्यइ खिताब खुसफहिमनुसीका जिनशासन-हितकारी, कुगुरु कुदेव कुधर्म उथापे बाद विजय जय पाया, शाह हजूर श्री विजयसेनसूरि धन्य धन्य तपगछ-राया. ४८
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