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विवेकहर्षकृत हीरविजयसूरि (निर्वाण) रास
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इक दिन शाह दरगाह[दरबार]मई पूछइ श्री भाjचंद, हीर-पटोधर कउण हइ, कइसे तस गुणवृंद. ३६ भाण भणइ भूपति सुणउ, श्री विजयसेन सूरिराज, इक रसना क्युं वर्णवू, गुण अनंत महाराज. ३७
ढाल : राग गउडी हीर-पटोधर विजयसेन सूरीसर राजइ, सकल-सूरि-सिरताज राज छत्राधिप छाजइ, गडगडंत पंडित प्रचंड जस सीस दवाजइ, कुमत-मिथ्यामत-वृंद-फंद सब दूरि भाजइ. ३८ हैम सवालख्य महाभाष्य प्रक्रिया प्रमुख, जाणई सहु व्याकरणभेद सरसती वसइ मुक्खि, जाणइं सहू साहित्य वृत्ति छंदादिक जाणइ, नैषध प्रमुख जे काव्यग्रंथ व[वा]णिवृत्ति वखाणइ. ३९ जाणइ पिंगल भरतभेद संगीत सुरंग, वंस नाटक विविध ग्रंथ जाणइ नवरंग, षट् दरिसनना विविध ग्रंथ चिंतामणि चंग, बोलइ प्रगट प्रमाण जाम जाणे जलधितरंग. ४० सकल कुराण पुराण वेद स्मृति भारत जाणइ, एक श्लोकना सहसबद्ध करी अर्थ वखाणइ, खंडित पंडित-मान पिंडखंडन सहू बूझइ, रवितलि एहवो नहीं भट्ट जेह-स्युं कोइ झूझइ. ४१ द्वादश-अंगी छ लाख ग्रंथ जिह्वाग्रे वखाणइ, एक दिवसि शतबद्ध श्लोक मुखपाठिं आणइ, ज्योतिष गणित निमित्तभेद निज मनमा राखइ, पंडित मूढ अजाण जाण सहूनइं समझावइ. ४२ स्वसमय परसमयादि ग्यान इत्यादि धरता, खडी-उछालइ काव्यग्रंथ शतसहस करंता. ४३
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