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विवेकहर्षकृत हीरविजयसूरि (निर्वाण) रास
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सकल देश
मझारि,
भुवनमोहन वयण निसुणी षट् मास ताई वरसमासुं पलावइ जीव- अमारि, वयण तुझ सुररयण तोलइ वरणव्यां किम जाई, जे सुणी अकबर समझिओ कहई, को न मारई जगि गाय रे, ताय रे, मनमो० २३
गाय केरे चरण धोइ दूध पी राय, टोडरमल्ल सरिखे छडावी नहीं गाय, सकल देश विदेशमाहिं हव गउ-अमार, तो धन्य धन्य श्री जिनवंश वीरवंशि उग्या, हीरविजय गणधार रे तारि रे. मनमो० २४
राय
कवित्वं [तं]
जिणि तोर्या चीतउर उर गई [ढ] कइ पुराणा, रणथंभर थिरथंभ दंभ मोड्या समीआणा, काबल सु कुंभलमेर कोट कहिउ सुपराणा, कासमीर कालिकोट लोट कीने रायराणा, करि कहिर शहर तोर मुलुक जूनागढ पणि जेर किअ, ह ह हठी हमाउसुत धन्य हीरजी तसु धर्म दि. २५ जिणि कीनो बहुत सिकार जीव कइ कोडि बिडारे, काबिल जिहां अजमेर कोस प्रति किए मनारे, पंचसयां मृगसींग जोडि प्रत्येक स मारे, निज सिकार सहिनाण लोग अगलेकुं दिखारे, सो अकबर हीर- बचन सुणि सुसु कीने सुबिवेक, जिणि कुमारपाल नरपति प्रमुख वीसारे सु अनेक. २६
२६९
ढाल
शेख अबदल महुल ताई सामुहउ नरराज, आवइ ते पालउ परम भगतिं भेटवा गुरुराज, पेसकसी प्रथम्म कीनी पुस्तक प्रबल भंडार, जब न ल्यइ हीरजी तब कहइ नृप करउ मुझ निस्तार, सुंदर हीरजी मनमो० २७
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