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________________ २६८ Jain Education International प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह चउद सहस गयवर जस मंदिरि गर्जति गयण गह्मंड प्रचंड रे, गर्जο पंच लाख हेषारव फोरति पांच ब्रह्मंड. जग० १२ गढपति गजपति नरपति छत्रपति कइ सेवइ जसु राउ, पाहडपति कइ० वीस तीस च्यालीस हजारी कइ कइ जसु उंबराउ, जग० १३ अवल नवल नीसाण धसूके ध्रुसति धरणिधरराउ, ग्रssss ध्रुस ० प्रबल सबल दल कंपित चंपित भुवन भडकी भडवाउ. जगत्र० १४ कइ सुलतान गुमान गिराए, कइ द्रुग मोरे मान जगत्रमइ, कइ० रवितलि को न सिरब्बरि सब सिरिं एकहीं तेरी आन. जगत्र० १५ शाह सलीम सुलतान शेखुजी सुंदर शाह मुराद शाहजादे, सुंदर. दाणिआर दीयति दलपति चिहु खंडि जस जसवाद जगत्र० १६ दुहा शेख सबल अबदलफजिल, जस जगमगइ वजीर, च्यार बुद्धिधर चतुर नर, जस दील माने हीर. १७ तरणिमंत्र जस जागतउ, जपइ प्रथम जिहां पडुर, च्यार खंड साध्यां वती, जस चिहु खंडी मुहुर. १८ इम अनेक नवनव मदल, सकल महीतल राज, सफल करइ अकबर नृपति, जब भेटे हीर गुरुराज. १९ मंत्र तंत्र यंत्रादि बल नहीं विद्या परचंड, शाह अकबर आगलि फुरइ, जिनि दूरि किए पाखंड. २० कवित्वं [तं] मंडइ नहीं परचंड, तुंड जिहिं आगई मंडलं, छंडि गए सब वीर, पीर पइगंबर शेख रेख नहीं रंग, भंग सब भए मंदर कलंदर फंद, भूत प्रेत झोटींग झड मुला मसीत न जो गणइ, झुंडल, सन्यासी, छंद की बनवासी, इक धन्य धन्य गुरु हीरजी जस सो अकबर सुवचन सुणइ २१ ढाल : राग मल्हार मनमोहन हीरजी राजीउ ए जिणि मोह्यउ अकबरशाहि रे हीरजी, तुं तउ सुविहित- साधु - शिरोमणी रे तुझ दरिसन मोहनगार रे, सार रे जेह निरखिओ जगत्रपति हरखिउ ए. २२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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