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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
गायनी बिलकुल हिंसा थाय नहीं, ऋषिपंचमी सहित पर्युषणना आठ मळी नवे दिवसोमां, श्राद्धपक्षमां, सर्व एकादशीओ, रविवारो, अमावास्याओना दिनोमां तथा महाराजना जन्मदिवस अने राज्यदिने सर्व जीवोनी हिंसा न थाय." वळी ते राजाए भुजनगरमां राजविहार नामर्नु ऋषभनाथनुं जैन मंदिर कराव्यु सं.१६५८, ने तपागच्छना संघने स्वाधीन कर्यु के जे हाल मोजूद छे. आ मुनिए कच्छना खाखर गाममा ओशवालोने प्रतिबोधी श्रावक क्रियाओ समजावीने त्यां सं.१६५७मां त्रण मोटी प्रतिमानी अंजनशलाका करी सं.१६५९मां त्यां शत्रुजयावतार नामना तैयार थयेला चैत्यनी प्रतिष्ठा करी. (जि.२.नं.४४६)
तेमणे (पोताना गुरुभाई) परमानंद, महानंद, (पोताना शिष्य) उदयहर्ष साथे जहांगीर बादशाहने विनंती, करी के “जो समग्र रक्षण करेला राज्यमा अमारा पवित्र बार दिवसो - भादरवा पजसणना दिवसोमां हिंसा करवानी जग्याओमां कोई पण जातना जीवोनी हिंसा करवामां नहीं आवे तो अमने मान मळवानुं कारण थशे, अने घणा जीवो आपना ऊंचा अने पवित्र हुकमथी बची जशे. तेम तेनो सारो बदलो आपना पवित्र, श्रेष्ठ अने मुबारक राज्यने मळशे.' आथी बादशाहे फरमान आप्यु के मजकूर बार दिवसोमां दर वर्षे राज्यनी अंदर हिंसा करवानी जग्याओमां तमाम रक्षण करेला प्राणीओने मारवामां आवे नहीं. (जुओ सूरीश्वर अने सम्राट, परिशिष्ट ग) वळी तेमणे ‘परब्रह्मप्रकाश' नामनो ग्रंथ भाषामां पद्यमय बनाव्यो छे.
आ विवेकहर्षनो सं.१६६७नो प्रतिमालेख नीचे प्रमाणे उपलब्ध छ : “सं.१६६७ व. उ. ज्ञा. जडिया गो. सं. होला पुत्र सं. पूरणमल्ल पुत्र सं. भूपतिना श्री विमलनाथबिंबं महोपाध्याय श्री विवेकहर्षगण्युपदेशात् का.प्र. तपागच्छेद्र भ. श्री विजयसेनसूरिभिः.' (ना.१, नं.१२०)
कांना गुरु हर्षाणंद ते आणंदविमलसूरिना शिष्य ऋषि श्रीपतिना शिष्य हता अने कर्तानी शिष्यपरंपरामां तेना जयानंदगणि, तेना गजानंदगणि, तेना रूपानंदगणि ने तेना प्रेमानंदगणि थया कारणके कल्पसूत्र परना बाळावबोधनी एक प्रत खेडामां जोई हती तेमा लेखकप्रशस्ति ए छे के : “आणंदविमलसूरि-ऋषि श्रीपति-हर्षानंदगणि-महाउपाध्याय विवेकहर्ष-जयानंदगणिगजानंदगणि-रूपानंदगणि-प्रेमानंदगणि वाचनार्थ."
[कर्ता-कृति गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.४१६ पर नोंधायेल छे अने कृति 'हीरस्वाध्याय भा.१' (संपा. मुनि महाबोधिविजय, सं.२०५३)मां छपायेल छे....
'हीरस्वाध्याय' मां पहेली ५२ कडी वधारानी मळे छे. पण बाकीनी देशाईना पाठ मुजब ज छे अने पुष्पिका पण ए ज छे. देखीती रीते ज देशाईना पाठमां कृति वच्चेथी शरू थाय छे. एटलेके ए आरंभे अपूर्ण छे. मुनि महाबोधिविजयने संपूर्ण कृतिवाळी बीजी कोई प्रत मळेली होवी जोईए पण आ विशे एमणे कशी ज माहिती आपी नथी. अहीं 'हीरस्वाध्याय'नी आरंभनी ४८ कडी आमेज करी लेवामां आवी छे. ___पंडित श्री ५ अमरविजयगुरूभ्यो नमः' एवी पंक्तिथी लईने आवती कृति अरधेथी शरू थाय एम केम बन्युं हशे ए समजाय एवं नथी. 'जैन गूर्जर कविओ'मां पण कृतिनो
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