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२६५ विवेकहर्षकृत हीरविजयसरि (निर्वाण) रास
(आ कृति 'पांडव नयन' (५२) एटले सं.१६५२मां हीरविजयसूरिना स्वर्गवासना वर्षमा ज तपगच्छीय विवेकहर्षे वीजापुरमां रची छे अने त्यां ज आनी प्रत लखाई छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ, भाग १लो, नं.१७८ पृ.३११. [बीजी आवृत्ति भा.२, पृ.२७९-८०] तेओ पोते हर्षाणंदना शिष्य हता. अने हीरविजयसूरिनी शिष्यपरंपरामां थयेला अने तेमना पट्टधर विजयसेनसूरिनी आज्ञामा रहेला. विवेकहर्ष प्रतापी हता. तेमणे कच्छना राजा राव भारमल्लने (भारमल्ल पहेला, सं.१६४२थी १६८८, आत्मारामकृत कच्छनो इतिहास) प्रतिबोध्यो हतो. तेना संबंधीनी कच्छनी हकीकत कच्छनी मोटी खाखरना शत्रंजयविहार नामना जैन मंदिरनी अंदरनो एक मोटो शिलालेख छे तेमां आपेली छे. (ते शिलालेख पंन्यासश्री हंसविजयजीकृत प्रश्नोत्तर पुष्पमाला नामना पुस्तकना पृ.१५५मां अने जिनविजय २, नं.४४६मां छपायो छे.)
आ लेखनो सार श्री जिनविजय आपे छे के: सं.१६५६मा तपागच्छना आचार्य विजयसेनसूरिनी आज्ञाथी पं. विवेकहर्षगणिए कच्छ देशमा विहार कर्यो अने एक चातुर्मास भुज शहेरमा अने बीजं रायपुर बंदरमा कर्यु ते दरमियान तेमणे तत्कालीन कच्छना राजा भारमल्लजीने पोतानी विद्वत्ताथी रंजित करीने तेनी पासेथी केटलाक विशेष दिवसोमां जीवहिंसा बंध करावानो अमारि पडह वजडाव्यो; तथा राव भारमल्लजीए भुज नगरमा 'रायविहार' नामे एक सुंदर जैन मंदिर पण बंधाव्यु. भुजथी विहार करी पं. विवेकहर्षगणि कच्छना जेसला नामे मंडळ(प्रांत)मां गया. त्यां खाखर गामना सेंकडो ओसवालोने धर्मोपदेश आपी शुद्ध श्रावकना आचार वगेरे शिखडावी पूर्ण श्रद्धावान कर्या. ते वखते त्यां सा. वयरसीए तपागच्छना यतिओने रहेवा माटे एक नवीन उपाश्रय कराव्यो, तथा गुजरातमांथी सलाटोने बोलावी केटलीक जिनप्रतिमाओ तैयार करावी. सं.१६५७ना माघ सुदि १० सोमवारना दिवसे पं. विवेकहर्षगणिना हाथे तेमनी प्रतिष्ठा करावी.
आ लेख परथी स्पष्ट जणाय छे के विवेकहर्ष उपाध्याये आठथी सो सुधी अवधान करीने महाराष्ट्र कोंकणना राजा बुनिशाहि, महाराजश्री रामराजा खानखाना तथा नवरंगखान आदि अनेक राजाओ पासेथी लीधेला जीवो माटेना अमारि पटह तथा घणा केदीओना छुटकारा आदि सुकृत्यो कर्यां छे. मलकापुरमा मुला नामना मुनिने वादमां जीत्या, प्रतिष्ठान(पेठण)पुरमां यवनोने मोढे जैन धर्मनी स्तुति करावी तथा ब्राह्मण भट्टोने युक्ति वडे जीत्या, अने बोरिदपुरमा देवजी नामना वादीने जीत्यो. वळी जैन न्यायथी दक्षिणना जालणा नगरमा दिगंबराचार्यने हरावी काढी मुकाव्या, रामराजानी सभामां आत्माराम नामना वादीने जीत्यो.
आ उपाध्याये कच्छ देशमा सं.१६५६ ने ५७मां त्यांना राजा भारमल्लने प्रतिबोध्यो ने तेना परिणामे तेणे लेख करी आपी पोताना देशमा जीवहिंसानो निषेध कर्यो के “हमेशां
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