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धर्मसमुद्रकृत शकुंतला रास
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निसिदिवसि जल विण जेम जलचर तेम राजा टलवलइ; नवि भूख नींद्र न राजकाज अवनि सूनी करि कलइ. निवि मंत्रि तिणि वन माहि रमवा राय तेडइ आग्रहइ; वीसारवा दुख भणीय नरवर केलि उछ्व बहु वहइ. ९५ इणि खिणि संभल्यु सिंहनु साद, नाद करि आश्रमि गूंजतउ ए; रिषि तणो गोकुल राखवा राय जाइ पासइ जिम बलवतउ ए. ९६ बलवतउ पुहवीपाल, वनि जाइ जिम ततकाल; तिम एक देखइ बाल, देयतउ हरि प्रति फाल. ९७ देउ हरि प्रति फाल बालक अतुलबल झूझ वली;
राजा सखाइ थयउ तिणि खिणि सिंह नंख्य निरदली; ते कुंअर देखी अमीय पूरइ रायलोयण उल्लसइ; नृप भइ आलिंगन समोपी, वछ ! कहि तुं किहि वसइ. ९८ कहइ कुंअर दुक्कंत मुझ तात, मात रिषिधुय सकुंतला ए; वास वनवासि फलफूल आहार, पहिरणि तरूअर वलकला ए. ९९ पहिरणइ वलकल एह, जागव्यो नरवर नेह, ओलखी पुत्र सनेह, तुह माय किहिं छइ तेह. १०० मुझ माय दाखं, साथि आयउ, वेगि मुनि आश्रमि जइ; अपराध खामई, बोध पामइ, सतीय कामइ थिर थइ. रिषि-साखि सुंदरि भणइ सामी, साप दुर्वासा तणउ; दूसण किस्युं तुम्हे अम्ह दीजइ, करम मेलउ आपणउ . १०१ गयवर गुडीय सुत माहि [ साहि ?] सकुंतला आणीय नय महोत्सवइ ए; बलपण बलवंत ते कुंअर रंगि युवराजपदवी ठवइ ए. १०२ पदि ठविउ सुत युवराज, संग्रहई अरिअण राज, नृप करइ वंछित काज, राखतउ कुलवटलाज. १०३ कुलवटलाज राखइ विनय दाखइ, सत्य भाखइ जे मुखई; दुष्कंतराय शिकुंतला सुत सदा जयवंतउ सुखइ. ए रास भणतां रंगि सुणतां, पाप-कसमल परिहरउ; कवि कहि धर्म्मसमुद्र सूधा सील ऊपरि खप करउ. १०४ इति श्री सकुंतला रास समाप्त: पं. खेमकलश लखितं.
(मारी पासे ) [ लक्ष्मीदास सुखलाल, सुरत ]
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