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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह ते आव्यउ इणि भवि अंतराय, करवउ हिवि केहवु मइ उपाय; तुं माय धरिणी, दिई मुज्झ ठाम, जइ साचु सील तणु प्रमाण. ८४ ईम सतीय वचन किम कूड थाइ, देखता पुहवी-विवरि जाइ; हा हा रव विरचइ लोकवृंद, चमकिउ चित्तई ततखिण नरिंद. ८५ महि माहि सील तणइ विनोद, नागेसरि आणी घरि प्रमोद; दिन केता राखी भुवनवासि, मानी तिणि बहिनि करि विसासि. आसनउ प्रसवावसर हेव, पहुचाडइ तापस पासि देव; सुर भणइ, नहीं मनि किसुंय पाप, पणि ऋषि दुर्वासा तणु साप. ८७ कुलपति ते मानइ वयण नाग, सखी ए पणि बोल्यु शाप लाग; दिन पूरे जनम्यउ तेजवंत, सुत देखी हरख्या रिषि तुरंत. ८८
वस्तु जेण अवसरि, जेण अवसरि, सरह उपकंठ; मुद्रा पाडी कर थकी, झलहलंति धीवरहिं निरखी, ग्यउ जवहरि वेचवा रायनाम तिणि सेठि परखी; कर दीधी तलवर तणइ, माछी बंध्यउ ताम; नृप आगलि वींटी सहित, मेल्ही करइ प्रणाम. ८९
ढाळ ९: धरिली देखीय मुद्रडी हिवि नरनाह, दाह हीयडइ अति अवतर्यउ ए; संभरी ते सवि पूरव वात, पातकपंकि हु किम भर्यउ ए. ९० किम भरिउ पातकपंक, ए हूउ माहरउ वंक; जे सतीय दिद्ध कलंक, आणी निसी नवि संक. ९१ नवि संक आणी वात जाणी, पखइ नारि न मनि धरी; स्युं थयुं परवसि संनिपातहि, धात माहरी ए फिरी. मद चड्यइ मइ मति, वनहिं वरणी, कवण घरणी अवगुणी; किणि परइं लहीइ किणइ कहीइं, झंक पइठी अतिघणी. ९२ धीवर पूछ्यउ मुद्रिका ठाम, ताम कहइ सरवरि मइ लही ए; पाडी होयस्यई पीयतां नीर, तीर सरवर तणइ तिणि सही ए. ९३
तिणि सहीय सरजल माहि, लीधी कहिओ नरनाहि; पणि पडिउ विरह अवाहि, टलवलइ निसिदिनि नाहि. ९४
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