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________________ २४२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह ढाल २ : एक दिवसे रे शेठ सुव्रत पोसो करे - ए देशी पोल मांडवीजी ते मांहे पोलां घणी, काका बलियानी सुविधि तणी प्रतिमा सुणी; हरि किसनाजी पोल सेठनी अति भली, पर-उपगारीजी शांति निरखो रंगरलि. रंगरलि जिन पास पेखो, सहस्र नाथ फणावलि, पोल त्रीजी समेतशिखरे, जोतां जिन कमलामलि [कमलावलि], सुरदास सुसार श्रेष्ठी पोल तेहना नामनी, आदि जिनने निरख सजनी कांति घनमें दामनी. १ जिन विमल रे लालभाईनी पोलमें, नाग भुधर रे शांति जिन रंगरोलमें; चोक माणक रे महुर्त पोल विशाल छे, जिन शीतल रे त्रिभुवननाथ दयाल छे. दयाल दीठो अजित जिनवर पोल लूहार तणी सुणी, रूप सुरचंद पोल प्रतिमा, वासुपूज्य सोहामणी; तीर्थस्वामि विमल नामि दाइनी खडकी सदा, पोल घांची नाथ संभव साथ दायक शिव मुदा. २ जिन संभव रे क्षेत्रपालना वासमें, गति छेदी रे नाथ मल्या सुख-रासमें; भेटी सुमति रे मुको मननो आमलो, च्यार देहरा रे पोल फतासानी सांभलो. सांभली भावे सुजाण चेतन वासपूज्य विराजता, श्रेयांस जिनवर जगत ईश्वर सजल जलधर गाजता; वीर मोटो धीर महीमें चैत्य चोथो मन धरो, सुमति-रमणी स्वाद लेवा भविक सेवा नित करो. ३ नेमि जिनवर रे ब्रह्मचारीशिरसेहरो, पोल टीबल रे दीठो अभिनव देहरो; पोल हाजे रे छाजे नव शासनपति, पोल मांहि रे शांतिनाथनी शुभ मति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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