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________________ रत्नविजयकृत अमदावाद तीर्थमाळा Jain Education International शुभ मति सेवो चंद्र शांति जे भणी ग्रंथे विधि, नांम पोलनुं राम मंदिर महावीर महिमानिधि; एह पोलें भविक निरखो श्री सुपारस दिनमणी, पीपरडीनी पोल मांहि सुमति जिन शोभा घणी. ४ पासानी रे पोलें ऋषभ दिवाकरू, दुजा जिनवर रे धर्म अनंत गुणाकरू; कूवे खारे रे पोले संभव जिन तपें, लांबेश्वर रे बे जिन योगीश्वर जपें. जपे योगी सहस्रफणना सावला सुहामणा, नाम समरो भविक भावे पास प्रभु रलियामणा; दोसीवाडें दोय देहरां नाथ सकल गुणाकरा, पार्श्व भावा जगत चावा स्वामि श्री सीमंधरा. ५ वाडे कुसमे रे शांति जिन प्रतपें अति, मारवाडि रे खडकी मांहे जिनपति, देव दुजा रे नित समरे सुरनरपति, पोल सारी रे कोठारीनी शुभ मति, शुभ मति सुणज्यो तेह माहिं पोल वाघण परगडी, जगतवल्लभनाथ समरूं केम विसरूं ईक घडी; तेह पाडे चैत्य सारां षट तणी संख्या सुणो, आदीश्वर ने अजित स्वामि दोय शांति जिन भणो. ६ चिंतामणी रे पारस आसा पुरतो, चूरतो; वीर वंदो रे संकट संघनां पोल चौमुख रे कलिकुंड नामे पास छे, वलि शांति रे दिनकर जेम प्रकाश छे. प्रकाश प्रभुनो पोल नगीना आदि जिनवरनो सुण्यो, साहपुर में नाथ संभव भक्तिभावें संथुण्यो; पंचभाईनी पोल रूडी चैत्य बे जिन राजता, आदि शांतिदेव देखी देव दुजा लाजता. ७ दुहा ईसल पारसनाथना, गुणगणमणी गंभीर; पूजी कीका पोलमें, भवजल तरवा धीर. १ For Private & Personal Use Only २४३ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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