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________________ २२४ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह भाषा हवई पूजा आरंभीई तु भमारूली, आदि जिणेसर देव तु, चिंहुं दिसि घंटा रणझणइ तु, दीप निरंतरमेव तु; पहिलं जईअ अंघोलीई तु भ० अंघोलीई सरीरि तु, क्षीरोदकनां धोतीयां तु भ. ओढणि दक्षिण चीर तु. २२ नव चुकीइ निहालीइ तु भ० ओरसीआनी ओलि तु, चंदन घन घनसार घसी तु भ. केसर मेलि म तोलि तु; पीतलमय समोसरण तु भ० त्रिणि प्रदक्षिण देवि तु, कर्मसिंहि कारावीउ तु भ० ते बहु वित वेचेवि तु. २३ तोरणि दीसई कोरणी तु भ. आरासण पाषाण तु, तिहां निरखी भमरी भली तु भ. लोक करईं वखाण तु; मूल गभारा माहि गया तु भ. पेखिउ प्रथम जिणंद तु, मूरति अति रूलीआमणी तु भ० भविअण-नयणाणंद तु. २४ सोवनमय पगि पालठी तु भ. हाथि सोवन बीजपूर तु, बिहुं बाहे बे बहिरखा तु भ. बहिकइ अंग कपूर तु; हार हीइ बे बहिबही तु भ. श्रीवच्छ तेजनुं पूर तु, कांने कुंडल झलहलइ तु भ. केस-सिहर केसूर तु. २५ देतई साहि करावीउ तु भ० अमूलिक तिलक निलाडि तु, मस्तिक मुकुट निहालतां तु भ. पूजइ मनह रूहाडि तु; न्हवण करीनइ लूहीई तु भ० अंगलूहणई प्रभु-अंग तु, चंदन केसरि कपूरिं तु भ. अंगीअ रची सुअंगि तु. २६ लाल गुलाल गुंथावीइ तु भ. जातीफूल जासूल तु, सेवंत्रीनी मालडी तु भ० पाडलफूल अमूल तु; दह दिसि परिमल वासती तु भ. वासंती सुरमाल तु, वालउ वेउल वउलसिरी तु भ. चंपक केरी माल तु. २७ आखी निरखी केवडी तु भ. बेवडी फूलह माल तु, बिसरा त्रिसरां चउसरां तु भ. टोडर गुणिहिं रसाल तु; दमण बिमणउ परिमलई तु भ. मरूअ नइ मचकुंद तु, चंगेरी फूले भरी तु भ० पूजिउ प्रथम जिणंद तु. २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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