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________________ २२५ अनंतहंसकृत ईडर चैत्यपरिपाटी आगलि भोग ऊखेवीई तु भ. कृष्णागर कपूर तु, मृगमद महिमा महिमहई तु भ० वाजई मंगल तूर तु; हवई विगतिं जिन वांदीई तु भ. पोढी प्रतिमा च्यारि तु; पीतलमय वीर पास जिण तु भ० आदि संति भव तारि तु. २९. नान्हां मोटां बिंब सर्व तु भ. पुजी पुहता बारि तु, काउसगी ए चउवीस जिणु तु भ. वीर सुपास जुहारि तु; हस्तमुख बिंबह तणी तु भ. ओलि घणी उदार तु, बिंब सवे मईं पूजीआं तु भ० पीतलमय नवि पार तु. ३० भद्र भला बे बारणइ तु भ. चिहुं दिसें चउसाल तु, राजकाज धुरंधर तु भ. श्री सायर श्रीपाल तु; सहजपाल सहजिं सुगुण तु भ० धन वेचिउ सुठाम तु. कुंथु सुमति थापी करी तु भ. चंद्र लिहाविउ नाम तु. ३१ स्नात्र महाधज आरती तु भ. मंगलदीप करंति तु, चिहुं दिसि आवई संघ घणा तु भ. पुण्यभंडार भरंति तु; वाजईं त्रंबक दडदडी तु भ० वाजईं ढोल नीसाण तु, मद्दल भुंगल भेर रवि तु भ० रंजिउ राउ श्री भाण तु. ३२ वस्तु रिसह जिणवर रिसह जिणवर करिअ महापूज, वालु वेउल मालती मरूअ कुंद मचकुंद सारिअ, पितलमय वीर जिण पास सामि पासईं जुहारिअ; देई महाधज आरती मंगलदीप करेवि, हिव जुगति जिन वंदीइ हीअडइ हरख धरेवि. ३३ भाषा हिव जुगतिं जिन वंदीइए माल्हंतडे बावन देहरी पंति, सुणि सुंदरू, भद्र भलु मदराजनु ए मा. पहिलं पूजिसु संति, सु० साह सहसा वरजांगनु ए मा. बीजइ आदि जिणंद, सु० दोसी हेमा रतना तणी ए मा० देहरी धर्म जिणंद. सु. ३४ देहरी देहरी वंदता ए मा. ऊपजां अतिहिं आणंद, सु० आहम्मदावादी नररयण मा० सा इसर हरिचंद, सु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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