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________________ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह हो तापस ! असमंजस नवि भाखीइ, रहउ रहउ म-म द्यउ आल, हो तापस ! कुवचन कुण दाखीइ, जीवदया-प्रतिपाल; हो तापस ! असमंजस नवि भाखीइ. ५७ किम मूल विण तरू नीपजइ, किम गाम पाखई सीम; संभल्युं नाम न तेहनु, परिणq तइ होइ कीम. हो तापस० ५८ रिषि भणइ, राजन ! स्युं कहइ, आवी अम्हारई ठामि; परणी तिजी ग्यउ कन्यका, वीसरई कवण विराम. हो तापस० ५९ तव भूप क्रोधातुर थई, कहइ संभलउ वनरोझ; ए राज मेल्हि अनेरडई, करज्यो जमाइ सोझ. हो तापस. ६० वली भृगुटि भीषण धडहडी, ऋषिबाल बोलइ बोल; रे नारिलंपट भूप तुं, म-म मंडि कपट निटोल. हो तापस० ६१ प्रभु ! रखे रिषिनइ कोपवउ, प्रीछवइ राय प्रधान; बहु राजकाजई वीसरी, जे पणि हुस्यइ निदानि. हो तापस० ६२ इक वार दृष्टिं निरखीई, परखीइ साची वात; इम कहीय तेडावी तिहां, पणि देवइ दीधउ घात. हो तापस० ६३ जिम दृष्टि दीठी तिम भणइ, नरनाह कोपाटोप; रइप(वा)डी रमतइ वीसस्यउं[वीसयंउ], कुलवटह कीधु लोप. हो तापस. ६४ पूछंति मुहता सुंदरी, उलखइ किणि अहिनाणि; सा भणइ भोलो छइ किस्युं, परणीयुं वन-अहिठाण. हो तापस. नृप कहइ अबला वलव[ल]ती, जउ बोलतां नही लाज; ऊवेखीइ ए नवि सती, रिषि भणइ राजन आज. हो तापस० ६६ तउजइ[तज्जइ ?] सभा सवि रायनइ, प्रीछी विचारउ वाच; । संकेत चेतन जागीइ, जाणीई जिणि करि साच. हो तापस. ६७ संकेत अम्ह को नवि अछइ, जउ हुई तउ कहउ एह; वलि मंत्रि पूछइ रिषिसुता, जागउ किणि परि नेह. हो तापस. ६८ ढाळ ७ : जयमाला वीनवइ सती सुकुमाल, सुणउ सुणउ जी स्वामि दयाल; दीधी मुद्रा ऊतारी, वालंभ ते किम वीसारी. ६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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