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धर्मसमुद्रकृत शकुंतला रास
स्वामि ! रखे इणि ठामि, मुझ मेल्हउ वीसारी; नामांकित द्यइ मूंद्रडी ए, असमाधि निवारी. ४९ पहुतउ राजा पुरि जिसइ ए, वनि कुलपति आव्यउ; पाणिग्रहण व्रतंत तेह, सखी पाइं जणाव्यु. मुगधपणइ हरख्यो मुणिंद, वर वरिंउ प्रसिद्ध; जगि मोटो दुक्कंतराय, मनवंछित सिद्ध. ५० तेह ज दिन आधान वृद्धि भरीइ छई मास; हरखी चित्त सकुंतला ए, पूराणी आस. आश्रमि प्रसव अशुद्धि जाणि, बोलई ऋषिराउ; वछि पधारउ सासरइ ए, पूरउ मनि भाउ. ५१ साथइ थविरा तापसी ए, दीधा दोइ सीस; रायभवणि पहुचाडवा ए, देतउ आसीस. कुलपति वउलावी वल्यु ए, हितसीख संभारि; चाली हवई सकुंतला ए, दु:ख आणइ भारी. ५२ क्रमि क्रमि पुर साकेत पासि, पहुता इक सरवरि; जल पीवा मुगलोयणी ए, तिह पइसइ परिसरि. हाथ पाय मुह धोयतां ए, मुंदरडी पाडी; भोलपणइ निरखी नहीं ए, हीयडउ ऊघाडी. ५३ नयरि पोलि मेल्ही तिहां ए, थविरा नइ सुंदरि; तापस माहे जईय राज जंपइ जयजय करि. कहीय कंठ-मुनिअ-सिषा[मुनि-आसिषा] ए, नृप करई प्रणाम; पूछइ सुख तप निराबाध, पूछइ आश्रमठाम. ५४ मुनि जंपइ तई राजीइ, सुख तप सात समाधि; पणि परणी तापससुता, तस मनवंछित साधि. ५५ कुलपति कंठइ मोकली, बइठी नयर-दुवारि; गर्भाधार सकुंतला, आणउ राज मझारि. ५६
ढाळ ६ : राग सोरठी नृप सुणीय संभ्रम भाव उपन्नउ, संपन्नउ ए कुण दोस; कुण कंठ कवण सकुंतला, ए कवण कूडउ सोस.
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