SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खेमराजकृत मंडपाचल (मांडवगढ) चैत्यपरिपाटी २११ भास संतिनाह तीजइ भवणि, चउथइ संभव सामि; आदिजिणेसर पंचमई, प्रणमउ सुभ परिणामि. १२ अहे छठई जिणहरि श्री सुपास आसा मन केरी, पूरई चूरइ दुख्खरासि वाजइ जसभेरी; खानपुरि हि जिण मूलबिंब इणि परि जोहारलं, द्रव्य भाव बिहुँ भेटि पूज करि दुरिय निवारउं. १३ धरमधुरंधर धार मांहिं सीमंधर सामी, सत्तम जिणहरि कणधवन सेवइं नितु धामी; उरि मुगताफल हार सार बिहुँ कानिहिं कुंडल, सिरि वर छत्र विसाल भाल सोहइ भामंडल. १४ भास अठम जिणहरि संतिजिण. नवमड रिसह जिणंदोः भाविक-चकोरह रंजवई, जसु मुख पूनिमचंदो. १५ अहे दसमई देउलि मलिय माण मरूदेवानंदण, बहुय बिंब-सउं नमिसु देवजणमणआणंदण; इग्यारमई रमई अपारमति नेमिकुमारो, यादवकुलसिंगारहार राजल-भरतारो. १६ बारम जिणहरि हरिखपूरि चिंतामणि पासो, गाइसु गरूयई रंगि अंगि आणी उल्लासो; सुमति तणउ दातार सुमति तेरमइ जुहारलं, अष्टापदि चउवीस देव सेवा नितु सारउ. १७ भास चउदसमई जिणवर जयउ, जिरावलि प्रभु पासो; पनरसम जिणहरि संतिजिण, सेवउ महिमनिवासो. १८ अहे सोलम जिणहरि पासनाह सलहीयई अपारो, सामलवन्न पसन्न जयउ अससेण-मल्हारो; संतिजिणेसर सतरमइ ए निय मणि समरेवउ, पूजीय अजिय अढारमइ ए जीविय-फल लेवउं. १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy