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________________ २१० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह भास रिसहेसर सिरि संतिजिणा, अष्टापद अवतारो; रवि जिम तेजहिं झिर्गामगइ, समवसरण-चउबारो. ४ अहे उलिहिं पास सुपास अजिय जिण मंडिय दीसईं, नंदीसरी बावन्न देव त्रिथु(ग्रह) भवणि सलीसजई [सलहीजइ]; रंगमंडपि रलीयामणउ जयघंट-निनादो, जाणे किरि जिणभवण करइ सरगह सिउं वादो. ५ रेवयगिरि सिरि पुंडरिक गिरिवर अन(व)तारो, कल्याणिक जिण वीर तणा अष्टापद सारो; दस भव पासकुमार नेमिजिण जान जोइजइ, भीति लिखी चित्राम देखि जिहिं मन मोहीजइ. ६ भास एरिस ईंद्रविमाण समा, जिणभवणिहिं जयवंतो; पासजिणेसर गुणनिलउ, नमिस्युं हरखि हसंतो. ७ अहे केसर घन घनसार सार चंदन घसि लेसो, इकसउ चउपन बिंब सहिय प्रभु पूज करिसो; कुसुममाल सुचि सोल करी जिनकंठि ठवेसो, नामिय गाइय विविह बंदि[धि] भावन भावेसो. ८ भास बीजइ जिणहरि हरिख भरि, वंदि सुसामि सुपासो; सुरतरू जिम अतिसय गुणहिं, जगजन पूरइ आसो. ९ अहे. दीसइ मुरति सामली ए सोभागिहि चंगी, झबझब झबकइ रतनजडित जसु अंगिहिं अंगी; रास भास उल्लास धरी नारी गावंती, जसु भवणिहिं प्रभुपूज काजि सोहई आवंती. १० साल पद्वीय सतीय सीत मूरति जसु थापी, देसविदेसिंहि इसीय सामिकीरति जगि व्यापी; पंचाणवइ जिणिंद-बिंब-परिवार मनोहर, कुसमकरंड भरेवि रंगि पूजिसु परमेसर. ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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