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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
ढाल धमालिनी शांति मुनिसुव्रत भेटीइ, हइडइ धरि आनंद, जिनवर ! रूप अनोपम सुंदरु, मोहनवेल्ली-कंद. २२ जिनवर ! तुं मेरे मनि निति वसई. आंकणी. प्रासाद अतिहिं मनोहरु चिहुं चोकी चोसाल, जिनवर ! दंड कलस धज शोभता, दीठइ मंगलमाल. जि. २३
आंगी अंगि सुहामणी, अनुपम दोई जिनरूप; जि. परगट महिमा जिन तणो, राख्यो कीरति थूप. जि. २४ घन पर प्रीति धरई सदा, जु बपईआ मोर; जि. तिम समरूं गुण तुह्म तणा, जु जगि चंद चकोर. जि. २५ निकस गई सब आपदा, संपद लहिई कोडि; जि. सुर नर किन्नर मानवी, सेवा करइ कर जोडि. जि. २६
ढाल शांति मुनिसुव्रत सार, सेविं हर्ष अपार, मुख. सोहइ चंदलो ए, मोहन-कंदलो ए, लोचन अमिय-कचोल, दंत हीरानी ओलि, वदन कमल भलं ए, सोहइ श्री जिन तणुं ए; भमुह कमाणि सुरंग, अधर प्रवाली-रंग, नासा सुंदरू ए, कीर मनोहरु ए, काम-हींडोला कान, कंठ सुकंबु समान, बलवंत मई सुणी ए, बांहडी जिन तणी ए. २७ जंघा कदली-थंभ, रेषा चामर कुंभ, आंगली मगफली ए, दीसई कुंडली ए, जिननइ अंगि जगीस, लख्यण छइ बत्रीस, महिमासुंदरु ए, रूप पुरंदरु ए; सोलसमउ जिनराज, महिमा महिअलि आज, जाण्यो जिन तणो ए, प्रताप अतिहिं घणो ए, अष्ट महाभय जेह, तुझ नामि नासइ तेह, भविअण-भयहरु ए, सेवे सुखकरु ए. २८ पुत्र कलत्र परिवार, दुख नवि पामइ लगार, जिनवर पूजीइ ए, जगि जस लीजीइ ए; जे पुज्यई त्रिण काल, तस घरि मंगलमाल, दुरगति नवि पडइ ए, हय-गय-रथि चडइ ए; पूजई नहीं नर जेह, नरगिं पडिआ तेह, काल अनंत भमइ ए, सुकृत सहु गमइ ए; बिंबपईसारो सार, करतां पामइ पार, जिनपद अनुसरइ ए, सुर कीरति करइ ए. २९ धन्य देश धन गाम, धन ए कहीए ठाम, प्रासाद कीधलउ ए, जगि जस लीधलउ ए; आणंद अबजी जेह, साचा श्रावक एह, रागी धरमना ए, धरमिं एकमना ए; जीवराज नइ मेघराज, धरम-धोरी शवराज, दीपक कुल तणा ए, अतिहिं सोहामणा ए; नवईनगरी प्रासाद, कर्यो धरी आह्लाद, आदीसर तणो ए द्रव्य खरच्यो घणो ए. ३०
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