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________________ रत्नचंद्रगणिकृत पडधरीप्रासादबिंबप्रवेशाधिकार स्तवन १९९ दूहा वेद(४) रस(५) रूतु(६) चंद्रमा(१) ए संवत्सर सार; माघ मास सित दशमि दिन ब्रह्मा योग उदार. १३ रोहिणी मिन लगन भलउं, प्रथम पुहुर शनिवार; बिंब पयसारू कीधलो, वरत्यो जयजयकार. १४ ढाल रथयात्रा कीधी घणइ मंडाणि रे, सिणगार्या रे अति मोटा केकाण रे; जन जोइ रे कहइ मुखि धन अवतार रे, उच्छवर्नु रे कहतु न लहुं पार रे. १५ इंद्राणी रे ईन्द्र सहित तिहां सुंदरु, सिणगार्या रे परतखि रूप पुरंदरु; याचकनइ रे दान घणउ तिहां दीजिइ, लखमीनो रे लाहु एणि परि लीजिइ. १६ चिहुं दिशिनउ रे संघ सहू पहिराविइ, अख्यांणां रे कामिनि रंगिं लाविइ; श्री शांतिजी रे राजवाहण मांहि थापिइ, मुनिसुव्रत रे सेवकनइ सुख आपिइ. १७ राजवाहण रे जाणे ईन्द्र-विमान रे, प्रतिमानो रे अधिकउ वाधइ वान रे, धन करणी रे भणसाली आणंद रे, जेहनइ नामि रे प्रतिमा शांति जिणिंद रे. १८ भणसाली रे अबजी हूउ विख्यात रे, जेहनी घरणी रे नवरंगदे सुजात रे, तेहनइ नामि रे श्री मुनिसुव्रत जिनवरु, पणइ देहरइ रे दोई जिनवर सोहई सुखकरु. १९ चंदवदनी मृगलोअनी बे, जिनवर-भवनिं जावइ बे; जिनगुण बोलइ रंग लइ बे, अधिक मधुर धुनि गावइ बे. चंदन अगर कस्तूरीआं बे, केसर कुसुम सुरंगा बे; जिन-तनु-अंगि सुहामनी बे, चरचइ मन करि चंगा बे. चूटक मधुर ध्वनि गावई भावन भावई कोकिल कंठि साहेलडीआं, सहु पहिरि पटोली नीली चोली करि धरि कनक-कचोलडीआं; सुंदरी गयगमणी छबि ससिवयणि सगुण सलूणी गोरडीआं, जिण-गुण-राग-रस-तानी चंदवदनि मृगलोअनिआं. २० यूटक जई करि मन चंगा अतिहिं सुरंगा कुंकुम चंदन तिलक करइ, चंपो उर जाइ केतकी पाडल कमल कुंद मकरंद करइ; करि गुंथिय माला योवनि बाला अतिहिं रसाला कंठि धरइ, सोलमउ जिन वंदी मनि आनंदी फिरिफिरि जिनके पाउ परइ. २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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