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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
यादव नई जगमाल कहीजइ, दोइ भ्राता गुणवंत, वीमा जाम तणइ घरि मंत्री, सूर्य परिं तेजवंत. ७
हुआ समकितधारी श्रावक गुणभंडार, घर मांहि न राखइ कुमतीनो पयसार, पडधरि पुर वास्यउं 'वास्या श्रावक लोक, दान पुण्य करइ निति, दूरि निवारइ शोक; भणसाली यादव-घरि घरणी अहिवदे सती समाणी, लघुभ्राता जगमाल तणइ घरि दाडिमदे गुणखाणी; शुभ दिन शुभ लक्षण गुणवंता अहिवदे दो सुत जाया, भणसाली आनंद नई अबजी सधव वधूइ गाया. ८ राजपट्ट परंपर आयु सत्तो जाम, तेहनइ घरि मंत्री दीपइ दोइ अभिराम, आणंद नइ अबजी साचा श्रावक एह, विजयसेन सूरिंदनी आज्ञा मानइ जेह; पडधरीइ प्रासाद करावा मुहूर्त्त भलउं जोवरावइ, आनंद अबजी भाव धरीनई जिनप्रासाद मंडावइ; संवत सोल एकसठ्ठा वरषे मागशिर वदि बुधवार, बीज दिने प्रासाद मंडावइ, वरत्यो जयजयकार. ९
ढाल
तिहां मोटो कीधो प्रासाद, देव-स्यउं मंडइ वाद, दीठइ मनि आह्लाद, मांड्या थंभ अनोपम दीसइ, कोरणि देखि भविक मन हींसइ, पूतलिई चित विकसइ; शिखरबद्ध प्रासाद निपायु, कविजनि ओपमा मेरू कहायो, अति उंडो छइ पायो, आणंद सुत जीवराज मेघराज, श्री जिनधर्म वधारी लाज. १० सुविहित साधु तिहांकिणि आवइ, मणि मुगताफल वेगि वधावइ, आणंदमंगल गावइ, तिहां अति मोटा मंडप कीधा, संध सहुनइ उतारा दीधा, मुहूर्त्त भली परिं लीधां; पोढा केलवाई पकवान, भोजन करावइ देइ बहुमान, आपइ श्रीफलपान, वाजइ ढोल नींसाण नफेरी, शंखनादिं सब नासइ वयरी, गाजइ भुंगल भेरी. ११ केलिथंभ आरोप्या मोटा, दूरिं नाठा दुर्जन खोटा, वाली कडि लंगोटा', हय गय रथ सिणगार्या वारु, रथ साबइला न लहुं पारु, जूइ लोक हजारु; भणसाली आणंद घरि घरणी, तेह तणी छइ अनुपम करणी, साची कुलउद्धरणी, चांपा नामि अनुपम नारि, तस नामिं मुनिसुव्रत सार, प्रतिमा भरावी उदार. १२
२. मिथ्यामत नगमई धर्मधुरंधर सार. ३. श्रावकनो तिहां वास. ४. अंगि धरइ उल्लास. ५. सुंदर लवलेश नई छोटा, जस फल जाणे गोटा.
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