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________________ १९७ रत्नचंद्रगणिकृत पडधरीप्रासादबिंबप्रवेशाधिकार स्तवन [कर्ता तपगच्छना शांतिचंद्रना शिष्य छे. सं.१६७६थी १६७९ना गाळानी एमनी केटलीक संस्कृत-गुजराती कृतिओ मळे छे, जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.३, पृ.१९५-९६ तथा गुजराती साहित्यकोश, खं.१, पृ.३४०. ए बन्नेमां आ कृतिनो निर्देश नथी. - संपा.] ऊँ नम: श्री आनंदि आदिजिन, प्रमुख नमउं चउवीस; गणधर गिरुआ चउदइं[चउदह सईं], बावन नामउं सीस. १ समरिय सरसति भगवती, माता दीउ मुझ मान; बिंबपईसारा-तवन ए, सुणयो सहु सावधान. २ आदि शांति जिणवर तणा, कवण गामि प्रासाद; दोई गाम उतपति कहुं, सुणो मुंकी परमाद. ३ कुंण गामथी आविआ, राजा कवण प्रधान; जेणइ प्रासाद कराविआ, तस लेस्यउं अभिधान. ४ श्री तपगछनो राजिउ, विजयसेन गणधार; वास धरई शिरि तेहनो, श्रावक अतिहिं उदार. ५ ढाल भद्रेसर नयरी भरतखंडि अभिराम, तिहां राज करइ राजा राउल[राउत] जाम, तेहनइ घरि मंत्री पेथो पुण्यप्रकाश, राजभार-धुरंधर उज्जल कीरति जास; उज्जल कीरति जास कहीजइ एक दिनि सुपन मझारि, देव एक आवीनई बोलइ थापो देश हलार; संवत पनर छन्नूआ वरषे श्रावण शुदि रविवार, आठमि तिथि चडतइ दिनि वास्यउं नवउं नगर उदार. ६ जाम राउत पाटि विभा जाम तेजवंत, 'तेणइ सहुं आण्या वयरीना जगि अंत, पेथा घरि घरणी प्रेमलादे सतिसार, बीजी तस रीडी धरइ निज घरनो भार; घरभार धरती बहु गुणवंती प्रीमलादे नारि प्रसिद्ध, सुतरतन तेणिं दोइ जनम्या जगि अजुआलउ कीध; १. कोई आण न खंडेई सहुई पय प्रणमंत. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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