SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह शाखा चलित मानुं तेडे ए, लोकने क्रीडा देवे ए, चेते ए, लोक वसंत ते आवीयो ए. १८ कामे उन्मत्त लोक ए, क्रीडा करे थोकाथोक ए, शोक ए, नहीं कोई चित्तमां तदा ए. १९ नारी लेइ निज साथे ए, उद्याने सहु आवे ए, सोहावे ए, नव नव आभूषण थकी ए. २० पण श्री नेमि जिणंदने, मदन खोभावी नवि शके ए, धक्के ए, मारी काढ्यो मूलथी ए. २१ कोकिल तिहां कूजित करे, वनपालक आवी भाखे रे, विलासे ए, कृष्णजी वन फल फूलीयो ए. २२ डिंडिम देवरावे तिहां, वनलक्ष्मी जोवा जाय ए, राय ए, सहु जन ऋद्धि-शुं आवजो ए. २३ ते सुणी सहु जन हलफल्यो , तरूणलोक मन हरखे ए, वरखे ए, मयण ते बाण सडसडे ए. २४ चोथे खंडे बीजी ए, ढाल प्रथम अधिकारे ए, प्यारे ए, पद्मविजय भाखी भली ए. २५ ढाल ३ : तनमन कीधुं तुने भेट, महारा वाल्हा - ए देशी कानजी जावे उद्यान. ए आंकणी रमवा चालो जाइए वनमां, पडहथी थाये विन्नाण, मारा वाल्हा, क्रीडा वसंतनी करवा चाल्या, बेसी निज निज यान, मारा वाल्हा. कानजी. १ तिहां मंदार - ने दमणो मरूओ, कुंदचंदननां थान, मा. जाइ जूइ ने केतकी वेली, वली रूद्राक्षनां रान. मारा० का० २ पारिजात ने धातकी सल्लकी, रायण चूत अमान, मा. कोरिंट ने मंदार मनोहर, जोवे नेम वली कान्ह. मारा. का. ३ रूखनी जाति न जगमां एहवी, न जडे एह उद्यान, मा० सहु जादव तिहां केलि करता, ज्युं नंदन सुर तान. मारा. का. ४ खाद्य खाये हसे खेले रंगे, केइ करे मद्यपान, मा० केइ करे वीजणे वली वायु, केइ कदली केरे पान, मारा. का. ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy