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________________ १३४ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह हां रे वाला नारि त्यजी गिरनारमां, लीला - शुं लीला - शुं हो, लीला शुं रह्यो रे लोभाय, एणी० हां रे वाला उदय वदे राजीमती, एम संदेश एम संदेश हो, एम संदेशे दीयो रे पठाय. एणी० ६ २६. कर्पूरशेखरकृत 'राजुल बारमास 'मांथी [कवि अंचलगच्छना रत्नशेखरना शिष्य हता अने सं.१८मी सदी उत्तरार्धमा थया छे. जुओ गुजराती साहित्यकोश, खं. १, पृ. ४७-४८. 'जैन गूर्जर कविओ' मां आनी नोंध नथी. कृति 'प्राचीन-मध्यकालीन बारमासा संग्रह' (संपा. शिवलाल जेसलपुरा ) मां छपायेली छे. - संपा. ] Jain Education International प्रभु, मानो मोरी वात रे, हुं तुज नेह नहीं तिलमात रे टाढ पडे माहा मासमां, वाला, हिम ठरे परभात, सूरजतेजे बेसीये, वाला, विकसे सुंदर गात रे, तो अरज करूं दिनरात रे, में जाणी तुमारी धात रे. घरे आवो, नेमीसर साहेबा. १५ माछलडी पाणी विना, वाला, तडफडी जीवित देत, तिम विछडवे हुं ताहरे, वाला, मन आणो तेह संकेत रे, तुज साथे फिरे मुज चित्त रे, पीयु, संभालो निज खेत रे, भव आठ तणी जे प्रीत रे, केम त्याग करो छो, मित्त रे. घरे० १६ फागुणना दिन फुटरा, वाला, वन कुंपल विकसंत, केशर पिचकारी भरी, वाला, खेलत कामिनी कंत रे, अबीर गुलाल उड़ंत रे, मधुरे स्वरे गावे वसंत रे, नरनारी मली गावंत रे, सुणी उपजे विरह अनंत रे. घरे० १७ ईणी ते पीयुडो [परदेश] वसे, वाला, केहशुं खेलुं फाग, कालजडे कोरू बले, वाला, लागो प्रेमनो दाघ रे, विरहानल मोहोटी आग रे, एहथी ताप तनु अथाग रे, साहेब शुं नवलो राग रे, प्रीतम हवे मलवा लाग रे. घरे० १८ चैत्रे तरूवर मोरीयां, वाला, फूल वनराय, परिमल महके फूलना, वाला, सुरभी शीतल वाय रे, कोकीला पंचमस्वर गाय रे, गुंजारव भमरना थाय रे, मन मालिनी-शुं ललचाय रे, भमरा रह्या लपटाय रे. घरे० १९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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