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________________ प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन १३५ रीसाणा रहीये नहीं, वाला, रूषणुं कीजे दूर, हलीमली खेलो रंग-शुं, वाला राखो चरण-हजूर रे, जिम वाधे प्रेम-अंकूर रे, जोवनीयुं जाये पूर रे, प्रीतम जो थायो शूर रे, दु:खडु कीजे चकचूर रे. घरे० २० २७. मोहनविजयकृत 'नर्मदासुंदरी रास'मांथी (मोहनविजय ए एक जबरा कवि अढारमा शतकमां थई गया छे. तेमनी चार कृतिओ पैकी त्रण कृतिओ मुद्रित थई छे अने ‘हरिवाहननो रास' नामनी कृति अप्रकट छे. आ वणे मुद्रित कृतिओमां जे वसंतनां वर्णनो छे ते तेमज नानां काव्यो मळी आव्यां छे ते अत्र मूक्यां छे. ते सर्व परथी तेमनी वर्णनशक्ति अने सुंदर शैली जणाई आवे छे. तेमनी काव्यकला अने व्याख्यान करवानी छटा एटलीबधी रसभरी वेधक हती के तेमना समयमा तेमनु नाम 'मोहनविजय लटकाळा' पड्युं हतुं. 'नर्मदासुंदरी रास' सं.१७५४मां समीमां रचायो छे. नर्मदासुंदरी साध्वीनी दीक्षा लेवा तैयार थाय छे त्यारे ए व्रत पाळतां छए ऋतुमां शू-शुं सहन करवू पडशे ए तेने ढालमां तेनो पिता समजावे छे अने दीक्षा लेतां वारे छे. ज्यारे ते सुंदरी तेनो दुहामां जवाब आपे छे. आ छ ऋतुमा वसंत ऋतुना संबंधी नीचे प्रमाणे जणावे छे.) । [मोहनविजय तपगच्छना रूपविजयना शिष्य हता अने एमनी कृतिओ सं.१७५४थी १७८३नां रचनावर्षो दर्शावे छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.५, पृ.१३७-५७ तथा गुजराती साहित्यकोश, खं.१, पृ.३२९-३० 'नर्मदासुंदरी रास' भीमसिंह माणक द्वारा प्रकाशित थयेल छे. - संपा.] वली तेमज वसंतऋतु आवे, तव किसलय तेम तरू भावे, वागे चंग मृदंग सुरागे, वली टोली गावे फागें. छांटे केसर भरी पीचकारी, तेम लाल गुलाल नरनारी, करे नाटक बत्रीशबद्ध, ते तो मुनिवेषं नवि कीध. दोहा तप नव किसलय तरू थयो, आवश्यक वाजीत्र, अध्ययनादिक फाग गति, केसर क्रिया विचित्र. मार्दव लाल गुलाल बहु, परिसह नाटक कीध, रूतु वसंत मांहे अहो, मुनिने ए अनिषिद्ध. २८. मोहनविजयकृत 'मानतुंग मानवती रास'मांथी (र.सं.१७६०.) [आ कृति भीमसिंह माणक अने सवाईभाई रायचंद द्वारा प्रकाशित थयेल छे. – संपा.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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