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________________ १३३ प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन २५. उदयरत्नकृत राजिमती संदेश _[राजविजयगच्छना शिवरत्नशि. उदयरत्ने रास वगेरे प्रकारनी अनेक कृतिओ रचेल छे ने ते सं.१७४९थी १७७९नां रचनावर्षो दर्शावे छे. जुओ जैन गुर्जर कविओ, भा.५, पृ.७६-११४, ४११-१३ तथा गुजराती साहित्यकोश, खं.१, पृ.३१-३२. त्यां आ कृति नोंधायेली नथी. – संपा.] राग काफी जइ कहेजो हो जई कहेजो हो. माहरा नेम नावलीयाने जईं कहेजो, महारा वारू वालमीयाने जइ कहेजो, महारा मीठडा हो स्वामी, एणी ऋतें घरें वहेला आवजो?. जइ कहेजो. १ हां रे वाला, अवर ऋतें विरहो दमे रे, वसंते रे वसंते हो रे, वसंते एहथी विशेष, एणी. केसरीया हो केसरीया, महारा मीठडा० हां रे वाला, मधुकर गुंजे मदभर्यो, अंब अंबे अंब अंबे हो, अंब अंबे पाकी दाडिम द्राख. एणी. २ हां रे वाला, वन वन बोले कोकिला, पग पगें पग पगें हो पग पगें फुल्या बहु फुल, एणी० हां रे वाला, सुरभी पवन सुस्तो वसे [वहे], सुखनां सुखना हो, सुखनां प्रगट्यां एह सूल. एणी. ३ हां रे वाला, गिरिवरें वनराजी भजे, सरोवरें सरोवरें हो, सरोवरें फूल्या कमलना छोड, एणी. हां रे वाला, घर घरे फाग खेले घणा, कामिनी कामिनी हो, कामिनी पहोंचे मनना कोड. एणी. ४ हां रे वाला अबीर गुलाल उडे बहु, रंगभीनी रंगभीनी हो, रंगभीनी न रहे हो नार, एणी. हां रे वाला जल-पिचकारी जोरमा, तिहां छटके हो तिहां छटके करी मनोहार. एणी० ५ १. 'ए रतें वहेलेरा आवजो' ए आने मळती देशी कवि मूळशंकरे एक नाटकमां एक रासडामां वापरी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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