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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
काव्यं कोकिला टहु करि आंबलइ, तेह तणइ सरि वियोगिआं बलई. साभिमानना कठोर हैया बलइ, तरूवरि कुंपलि आंबलइ. ६
फाग विरहीजन-मन-दारण, दारूण करवतधार, वनिवनि विहसि केवडी, केवडी भमर झंकार. ७ नव नव चंपकनी कली, निकलइ परिमलपूर, किहि चंदन अहि नव कुल, बकुल लता गुण भूरि; ८
काव्यं वसंत मासि पंथीजन कामिनी, वाट जोइ उभी गजगामनी, जाइ यौवन जेम सौदामिनी, वरसनी परि जाइ यामिनी; ९
दहा रितु वसंत इम व्यापिउ, नेमि जिन वनह मझारि, केशव-कामिनी परिवर्या, खेलइ विविध प्रकारि. १०
राग मल्हार वृंदावनमां वन वन तरू तलई, सरोवरजल सुविचार रे, राधा रूकमिणि भामा भामिनी, क्रीडइ नेमिकुमार रे. ११ माधव-मानिनि मुनिमन-मोहनी, खेलइ मास वसंत रे, मयण-महातरू-मंजरि मदमती, मयगल जिम मलंति रे. १२
द्रुपद के करकमलि छांटि जलभरी, के वर केसर-रोल रे, के नेमि छेहडइ वलगइ आवती, केती करइ टकोल रे. १३ नयन मींचांवइ कोएक पूंठिथी, कोइ छपावइ बाल रे, . कोइ करी माला नवनव कुसुमनी, कंठि ठवइ सुविशाल रे. १४ वंठ तणि परि तुं भमइ एकलो, मनि धरि नारि-उछाह रे, इम करी नारि नेमि मनावीया, राजमति-वीवाह रे. १५
८. जयवंतसूरिकृत 'नेमनाथ बारमास'माथी. ___ (आ कृति अप्रकट छे तेनी सं.१६९७मां लखायेली प्रत मळी छे, तेमांथी माह, फागण ने चैत्र मासनां वर्णन लईए.)
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