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________________ नेमविजयकृत नेमि बारमास ('शीलवती रास' ना कर्ता प्रसिद्ध नेमिविजयनी आ कृति छे.) [नेमविजय तपगच्छना तिलकविजयना शिष्य हता. एमनी रासादि घणी कृतिओ मळे छे, जे सं.१७५०थी १७८७ सुधीनां रचनावर्षों बतावे छे. जुओ जैन गुर्जर कविओ, भा.५, पृ.११६-२५ तथा गुजराती साहित्यकोश, खं. १, पृ.२२६. आ कृति 'प्राचीन-मध्यकालीन बारमासा संग्रह' (संपा. शिवलाल जेसलपुरा)मां पण प्रसिद्ध थयेली छे. पाठशुद्धिमां अहीं एनो लाभ लीधो छे. ___ अहीं आ पछीथी छपायेली महानंदमुनिकृत 'नेमराजुल बारमास' तत्त्वत: नेमविजयनी ज कृति छे. जुओ ए कृति विशेनी नोंध. नेमविजयनी कृतिनो पाठ क्यांक-क्यांक महानंदनी कृतिना पाठथी सुधर्यो छे. - संपा.] दूहा समरीइ शारद नाम साचुं, एह विना जाणीए सर्व काचु, ज्ञानविज्ञान ने ध्यान आपे, महिरनी लहिर अज्ञान कापे. १ चरण नमी गुरू तणां माम गाउं, नेमराजुलने चित्त ध्याउं, जे प्रभु सत्यसंपत्तिदाता, ए जिनभूषण सही जगत्राता. २ नेनना हेत-स्युं नेह जणावे, मास बारे कही प्रीउ मनावे, मास ए मागसिर मन्न भावे, राजल, वयण स्यु नेम सुणावे. ३ ढाल : प्रणमुं रे गिरजा रे नंदन - ए देशी मागसिर छे हितकारी रे, प्यारी जोवे छे रे वाट, सहीयर नेम न आवीयो, वाधीयो विरह-उचाट. हास्य विनोद ने दोहरा, भावे नही मुझ मन्न, चित्त मांहे लागी चटपटी, अटपटी बोलुं वचन्न. ४ वनखंडे ते विरहनां गोपी गावे रे गीत, निसदिन समरूं रे नाहलो, वहालो मोरे रे चित्त. पीयु विना दिन ए सखी, नारीने जावे रे नीठ. सहज सलुणा रे आविये, बोलिये वयण सुमीठ. ५ हाय हाय सखी ! शुं करूं, मन्मथ पीडे रे जोर, लोक मांहे घणुं लाजीए, कीजीए केहो झकोर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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