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________________ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह प्राण-प्रीउ विना किम रहे, आ मुझ दिलनी रे प्रीति, खण न वीसारूं खंति करी, कंते कीधी कुरीति. ६ दूहा फल्यां खेत्र ने खगा आवे, गोपी बिनोदनां गीत गावे, तेह सुणि मोहनां मोह व्यापे, प्रीउ विना विरहिणी किम ध्रापे. ७ रोस किस्यो इण पोसमें, दोस विना, जगनाह, विण बोल्यां किम दीजीए, वालंभ, दिलनो रे दाह. अवगुणनें गुण लेखवे, जे होय चतुर-सुजाण, तप जप मुकीने वेगलो, आवो-ने जीवन-प्राण. ८ एक घडीनी रे प्रीतडी किम मूके उत्तम जेह, छयलछबीला रे राजवी, छिटकी न दीजे रे छेह. उत्तम एह आचारडो, जनम लगें वहे नेह, फाटि पण फीटे नही, जेम पटोले रे रेह. ९ फुल्यो ते मघमघ मोगरो, उल्लस्यां तन्न कठोर, चितडे रे चाला मांडियां, दिल्ल घूमे घमघोर. चीर पीतांबर चोसरा, उर ठव्यो मोतीनो हार, रखे जाणु प्रीउ ! पहेलडी तो, भोगवे थई भरतार. १० तूं उपगारियो तूंहि ज ईश, कहुं एतलं तुझ नामि सीस, महिर करी मोहनां मंदिर पधारो, नारिनां नेहनां नयन ठारो. ११ [ढाल] मनोरथ माहरा मन मोहे रह्या रे हजार, सुखदुख मननी रे वारता, कोण सुणे निर्धार. जेहने मन छ रे नेहलो, ते भमे विकलशरीर, केतकी विना जिम भमरने, भावे न फुलकरीर. १२ ग्रहणा उतार्या रे गहबरी, पुरूष न राखुं रे पास, भोल भोलवे भामिनी, मदन तणी धरी आस. सजनी, सेज-तलाइने, हुं सेवू दीन ने रे रात, प्रीयु परदेसे सिधाविया, रखे होवे किसी घात. १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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