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________________ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह अलगी रहे उठ हाथ मुझथी, जो वंछे कल्याण रे, वळी शीलव्रत तुं दृढ पाले, एह करी मुझ वाणी रे. इम० ६३ इणि परे प्रतिबोधि कोश्या, धन श्री थूलीभद्र स्वामी रे, चउरासी चउवीसी सुधी, राख्यं जेणे नाम रे. इम० ६४ श्री तपागच्छ तखत सोहे, श्री विजयदेवसूरींद रे, तस सीस मांहे प्रधान सुंदर, वाचक सवि सुखकंद रे. इम० ६५ श्री लावण्यविजय उवज्झाय सेवक, श्री नित्यविजय बुध शिष्य रे, कहे चंद्रविजय नेह धरीने, सहु मन अधिक जगीस रे. इम० ६६ कलश इम थुण्यो स्वामी शीश नामी श्री थूलीभद्र गणधरवरो, अति लाभ जाणी सरस वाणी गाइओ सवि सुखकरो, तपगछ राजा श्री विजयसेन(देव) सूरि श्री लावण्यविजय उवझायवरो, श्री नित्यविजय बुध सेवक चंद्रविजय जयजय करो. ६७ - इति श्री थूलीभद्र मास बार संपूर्ण पठनार्थं गुरुणी जडावसरीजी. कल्याणमस्तु. (पत्र ५-१२, श्री मुक्तिकमल जैन मोहनज्ञानमंदिर, वडोदरा प्रत नं.२३३१. आ प्रत कविना समयनी लखायेली छे ए आदिमां पोताना गुरुने करेला नमस्कार परथी समजाय छे.) [प्रति कविनी स्वलिखित होवानी शक्यता छे. - संपा.] [आत्मानंद जन्मशताब्दी स्मारक ग्रंथ, संपा. मोहनलाल दलीचंद देशाई, १९३६] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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