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चतुर्थ विमर्श अनुमान प्रमाण
सा
अनुमानादि प्रमाणों के उपजीव्यत्वेन तथा ज्येष्ठत्वेन प्रत्यक्ष निरूपणानन्तर उद्देशकमप्राप्त अनुमान का निरूपण किया जा रहा है। सूत्रकार के 'अथ तत्पूर्वक त्रिविधमनुमान पूर्ववच्छेषवत्सामान्यतोदृष्टं च'1 इस अनुमानसूत्र की व्याख्या करते हुए भाष्यकार, वार्तिककार तथा जयन्त आदि ने सूत्रस्य 'तत्पूर्वकम्' को अनुमान क लक्षण तथा शेष भाग को अनुमान का विभाग माना है ।' 'तत्पूर्वकम' में सत्य पद केरल प्रत्यक्ष का ही वोधक नहीं, अपितु 'ते च तानि चेति तानि' इस एकशेष द्वारा 'ते' अविनाभाव-सम्बन्धदर्शन तथा लिंगदर्शन का बोधक है और 'तानि' प्रत्यक्ष, अनुमान आदि सभी प्रमागों का बोधक है । अतः प्रत्यक्षजनित संस्कार व संशयादि ज्ञान में अनुमान-लक्षण की अतिव्याप्ति नहीं, क्योंकि वे अविनाभावदशन तथा लिंगदर्शन से जन्य नहीं हैं। 'तानि' पद से सभी प्रत्यक्षादि प्रमाओं के अनुमानमलक अनुमान में लक्षण की अव्याप्ति भी नहीं है।
देश, काल, जाति आदि के भेद से अनन्त होने पर भी वह (अनुमान) तीन भेदों में ही विभक्त है, यह नियम बतलाने के लिये सूत्र में त्रिविध पद दिया गया है । अनुमान के तीन प्रकार अन्य नहीं, किन्तु पूर्ववत्, शेषवत् व सामान्यतोदृष्ट हैं, इसके लिये पूर्ववत् आदि पद दिये गये हैं।
कारण से कार्य की अनुमिति पूर्ववत, कार्य से कारण की अनुमिति शेषवत् तथा कार्यकारण से अन्य अविनाभून लिंग से अर्थान्तर की अनुमिति सामान्यतोदृष्ट है अथवा पूर्ववत् पद से केवलान्वयी अनुमान का, शेषवत् से केवल व्यतिरेकी और सामान्यतोदृष्ट पद से अन्वयव्यतिरेको अनुमान का ग्रहण है । ____ भासर्वज्ञ ने अनुमानसूत्र की पूर्वाचार्यो द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त व्याख्या का उल्लेख कर कहा है कि केवल 'तत्पूर्वकम्' अनुमान का लक्षण नहीं हो सकता, 1 न्यायसूत्र, १/१/५ 2. (अ) न्यायभाष्य, १/१/५ (ब) तत्पूर्वकमनुमानमित्यनेन समानासमानजातीयेभ्योऽनुमानं व्यवच्छिद्यते इति ।... तस्माद व्यवस्थितमेतत् तत्पूर्वकमनुमानमिति ।
-न्यायवार्तिक, १/१/५ (स) अनुमानमिति लक्ष्यनिर्देशः, तत्पूर्वकमिति लक्षणम् । -न्यायमंजरी, पूर्वभाग, पृ. १३३ 3. न्यायभूषण, पृ. १६० 4. न्यायभूषण, पृ. १६०
भान्या-११
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